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ब्यूरो/
अंगिका भाषा के लिए अब कुछ सुगबुगाहट शुरू हुई है- भाषा जो हम जन्म से कहते है, हमारी जननी के समतुल्य संस्कृति का प्रतीक है. इसकी उपेक्षा किसी कीमत में वर्दास्त नही किया जा सकता है.
अंगिका प्रेमियों के लिए एक खुशखबरी है; अंगिका आन्दोलन को और तेज करने हेतू आगामी 28 अक्टूबर से पटना में तीन दिवसीय अंग अंगिका महोत्सव की आयोजन की तैयारी शुरू हो चुकी है.
दिनांक 23 जुलाई को इस पर विचार विमर्श करने के लिए स्थानीय साहित्यकारों की एक बैठक शहर के जयप्रकाश उद्यान परिसर में की गई. बैठक की अध्यक्षता वरिष्ठ समाजसेवी किशोर जायसवाल ने की जबकि इसका संचालन वरिष्ठ साहित्यकार सह रंगकर्मी डॉक्टर जयंत सिन्हा जलद ने किया. वरिष्ठ कवि सच्चिदानंद साह किरण के सौजन्य से आयोजित बैठक में महोत्सव की तैयारी को लेकर कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर गंभीरता पूर्वक विचार किया गया. अध्यक्ष किशोर जायसवाल तथा कार्यक्रम संयोजक संजय कुमार सुमन को साहित्यकार डॉ छेदी साह स्मृति मंच के संयोजक कमलाकांत कोकिल ने अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया.
तैयारी में जुटे लोग.
अध्यक्ष किशोर जायसवाल ने कहा कि हमें अपनी भाषा का सम्मान किए बिना प्रगति के पथ पर आगे नहीं बढ़ सकते हैं. अंगिका भाषा को उन्होंने जननी के समतुल्य संस्कृति का प्रतीक माना. इसकी कतई उपेक्षा नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा कि अंग अंगिका महोत्सव अंगिका भाषा एवं साहित्य को नई ऊंचाई प्रदान करने में मील का पत्थर साबित होगा.
अंगिका मुख्य रूप से अंग क्षेत्र में बोली जाती है जिसमें बिहार के मुंगेर , भागलपुर और बांका जिले और झारखंड के संथाल परगना डिवीजन शामिल हैं. इसके वक्ताओं की संख्या लगभग १५ मिलियन लोग हैं. अंग क्षेत्र के अलावा , यह बिहार के पूर्णिया जिले के कुछ हिस्सों में भी बोली जाती है. हालांकि, पूर्णिया में, यह अल्पसंख्यक भाषा है क्योंकि पूर्णिया में मैथिल बहुमत है. भारत के बिहार और झारखंड राज्यों के अलावा, यह नेपाली तराई के मोरंग जिले में भी अल्पसंख्यक भाषा के रूप में बोली जाती है. यह पूर्वी इंडो-आर्यन भाषा परिवार से सम्बधित है तथा असमिया, मैथली और मगही जैसी भाषायो से निकटता से सम्बधित है.
समस्या यह है की अंगिका भारत के संविधान की 8वीं अनुसूची में सूचीबद्ध नहीं है. फिर भी, अंगिका भाषा आंदोलनों ने इसे शामिल करने की वकालत की है, और एक प्रस्तुत अनुरोध वर्तमान में सरकार के पास लंबित है। अंगिका देवनागरी लिपि में लिखी गई है ; हालांकि अंग लिपि और कैथी लिपियों का ऐतिहासिक रूप से उपयोग किया गया था.
इस बैठक को संबोधित करते हुए कार्यक्रम संयोजक संजय कुमार सुमन महोत्सव के उद्देश्यों पर चर्चा करते हुए सभी अंगिका साहित्यकारों और भाषा प्रेमियों से अपील करते हुए कि सारे अंतर विरोधियों को दूर करते हुए अपनी एकजुटता और यथोचित सहभागिता प्रदर्शित करें महोत्सव को सफल बनाएं. साहित्यकार सह पूर्व वाणिज्यकर संयुक्त आयुक्त कैलाश ठाकुर
ने सभी अंगिका भाषा प्रेमियों और साहित्यकारों से अपील करते हुए कहा कि अंगिका भाषा के संवर्धन और उत्तरोत्तर विकास के लिए समर्पित भाव से आगे बढ़ना चाहिए. आयोजन समिति के सचिव डॉ विभु रंजन ने कहा कि भाषा के इतिहास और उपलब्धियों की चर्चा करते हुए कहा कि हमारे कुछ अंतर विरोध के कारण अंगिका अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर सका. इसके लिए हमें सारे अंतर्विरोध और खामियों को दूर करते हुए समाज के अन्य वर्गों का साथ लेते हुए जनप्रतिनिधियों का सहयोग और विश्वास हासिल करना चाहिए. साहित्यकार डॉ उलूपी झा ने कहा कि अंगिका भाषा और साहित्य के विकास के लिए मन,वचन और कर्म से समर्पित और संकल्पित होना चाहिए. सरयुग पंडित सौम्य ने कहा कि हमारी इच्छा है कि अंगिका भाषा का वटवृक्ष इतना विशाल और छायादार हो कि मुख्यमंत्री सरीखे सभी उच्च
अध्यक्ष किशोर जायसवाल को सम्मानित करते हुए.
नेता मंत्री और प्रशासनिक अधिकारी सुस्ताने के लिए मौजूद हो. पूर्णेन्दु चौधरी ने कहा कि अंगिका की बात जब राजधानी क्षेत्र में गूजेंगी तो उसका व्यापक असर होगा. इसके लिए हम सबको पूरी एकजुटता के साथ है सफलता की तैयारी में जुट जाना चाहिए. अधिवक्ता त्रिलोकीनाथ दिवाकर ने कहा कि अंगिका भाषा के उत्थान के लिए वे हर संभव कोशिश करेंगे.साहित्यकार सच्चिदानंद किरण ने कहा कि अंगिका के विकास के लिए सब को यथोचित सहयोग करना चाहिए.
बैठक को शिक्षक सुबोध कुमार पासवान,अधिवक्ता त्रिलोकीनाथ दिवाकर, कपिल देव कृपाला,सरयुग पंडित सौम्य, प्रदीप कुमार दास, कमलाकांत कोकिल, अभय कुमार भारती, गौतम कुमार मंडल समेत दर्जनों व्यक्तियों ने भी संबोधित किया.
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