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खुबसूरत मुंगेर चर्च


अंग की धरती मुंगेर हिंदी भाषियों को प्रभु यीशु के संदेशों जानने का पहला मौका दिया था

@news5pm

December 25th, 2020

शिव शंकर सिंह पारिजात

 

भारत में अंग्रेजो के आगमन के साथ साथ ईसाई धर्म के प्रचार में अंग की धरती का एक खास भूमिका रही है.

भारत के चर्च के इतिहास में ईसाई धर्म के प्रमुख ग्रंथ ‘बाईबल’ का हिन्दी में अनुवाद एक महत्वपूर्ण घटना है, क्योंकि इसके माध्यम से देश की एक बड़ी आबादी के बीच प्रभु यीशु के पवित्र संदेशों का प्रचार-प्रसार हुआ. गौरतलब है कि बाईबल का यह पहला मुकम्मल अनुवाद मुंगेर (बिहार) के एक बैपटिस्ट मिशनरी (धर्म-गुरू)  जाॅन पारसन्स के द्वारा किया गया.

यहां बाईबल के ‘न्यू टेस्टामेंट’ अर्थात् ‘नया धर्म नियम’ का अनुवाद हुआ था. जिस बैपटिस्ट मिशन में अनुवाद के इस महत्वपूर्ण कार्य को अंजाम दिया गया, वो मुंगेर के किला-क्षेत्र में सूफी पीर नफा शाह के मज़ार के निकट गंगा के पश्चिमी तट पर सुजी घाट पर हरे-भरे घने पेड़ों के बीच स्थित है.

मुगेर की बैपटिस्ट मिशन कोठी

यह भी एक संयोग की बात है कि मुंगेर, जिसकी पहचान इसके पुराने किले और इसके इर्द-गिर्द हुए सत्ता संघर्ष की लड़ाइयों व बंदूक-बारुद के धमाकों के लिये है, से पूरे देश में प्रभु यीशु के शांति संदेश भी फैले.

मुंगेर की अहमियत जहां ईसाईयों के पवित्र धर्म-ग्रंथ की अनुवाद-स्थली होने के कारण है, वहीं भारत में बैपटिस्ट मिशन की स्थापना करनेवाले विलियम कैरी के नाम के साथ जुड़े होने के कारण भी है. मुंगेर ईसाइयों और उनके धर्म-प्रचारकों का पसंदीदा शहर रहा है जिसकी गवाही आज भी यहां की सिमेट्री में बने उनके अनगिनत कब्र दे रहे हैं.

बाईबल के ओल्ड और न्यू टेस्टामेंट में प्रभु यीशु की भविष्यवाणियां और उनके पूर्ण होने के दृष्टांत संग्रहित हैं. न्यू टेस्टामेंट में मत्ती रचित सुसमाचार में बताया गया है कि यीशु एक महान् गुरु हैं जिनको परमेश्वर की व्यवस्था की व्याख्या करने का अधिकार है तथा जो परमेश्वर के राज्य की शिक्षा देते हैं। अतः बाईबल के दोनों टेस्टामेंट ईसाई धर्म के मेरू-दंड हैं.

भारत में बाईबल के हिन्दी अनुवाद का इतिहास बड़ा ही रोचक है जिसका सिलसिला जर्मन मिशनरी (धर्म-गुरू) बेंजामिन शूल्ज के साथ 1726 के आस-पास शुरू होता है जिसे मुंगेर के बैपटिस्ट मिशनरी जाॅन पारसन्स ने कारगर अंजाम तक पहुंचाया. शूल्ज द्वारा किया गया बाईबल का हिन्दी अनुवाद आंशिक था जिसका प्रकाशन 1745 में हिन्दी भाषा के व्याकरण के साथ हुआ. शूल्ज ने तमिल और तेलुगू भाषाओं में भी बाईबल का अनुवाद किया था.

बाईबल के हिन्दी अनुवाद के प्रारंभिक चरण में ब्रिटिश मिशनरी विलियम कैरी (1761-1834) का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. कैरी ने बाईबल के बांग्ला, संस्कृत, ओड़िया, मराठी सहित अन्य 29 भाषाओं में भी अनुवाद के कार्य किये थे. किंतु कैरी के अनुवाद की भाषा अत्यंत दुरूह होने के कारण इसके दुबारा संशोधन नितांत जरूरत महसूस की गयी,  जिसे मुंगेर के जाॅन पारसन्स ने मुकम्मल किया.

मुंगेर सिमेंतिरी जिसकी आधार १८६५ में रखी गयी थी

 

बिहार जिला गजेटियर (भाग 7,1957) बताता है कि “श्रीरामपुर (पश्चिम बंगाल) के कैरी ने 1819 के अंत में पूरे बाईबल का हिन्दी अनुवाद किया था. किंतु कैरी द्वारा किया गया अनुवाद अत्यंत दुरूह था और इसपर पुनः कार्य करने की जरूरत थी जिसे संभवतः जाॅन पारसन्स ने पूरा किया.”

जाॅन पारसन्स इंग्लैंड के लोपरटन, सोमरसेट के रहने वाले थे. 1881 में लखनऊ से प्रकाशित व बी. एच. बेडले द्वारा सम्पादित ‘इंडियन मिशनरी डाइरेक्टरी एण्ड मेमोरियल वोल्यूम’ बताता है कि ‘पारसन्स, जो कि न्यू टेस्टामेंट के हिन्दी अनुवाद के काम से संबंधित थे, 1840 में भारत आये और मुंगेर में रहे तथा उनकी मृत्यु 1869 में हुई.’

पारसन्स एक सफल मिशनरी (धर्म-उपदेशक) एवं व्यवहारिक तथा प्रबुद्ध उपदेशक की तरह 29 वर्षों तक मुंगेर में रहकर धर्म व मानवता को समर्पित कार्य किये। मुंगेर के सीताकुंड रोड पर मुफस्सिल थाने के बगल में स्थित कब्रिस्तान में उन्हें दफनाया गया था.

पारसन्स के व्यक्तित्व एवं कृतित् : पारसन्स एक सफल मिशनरी (धर्म-उपदेशक) एवं व्यवहारिक तथा प्रबुद्ध उपदेशक की तरह 29 वर्षों तक मुंगेर में रहकर धर्म व मानवता को समर्पित कार्य किये. मुंगेर के सीताकुंड रोड पर मुफस्सिल थाने के बगल में स्थित कब्रिस्तान में उन्हें दफनाया गया था. पारसन्स के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर रौशनी डालते हुए तथा बाईबल के हिन्दी अनुवाद में उनके महत्त्वपूर्ण योगदान का उल्लेख करते हुए उनके कब्र के शिलालेख पर अंकित है कि ‘वे हिन्दी के एक परिपक्व विद्वान और सक्षम अनुवादक हैं. उनके द्वारा अनुवादित न्यू टेस्टामेंट का हिन्दी संस्करण अतुलनीय है.’

इस तरह यह निर्विवाद है कि मुंगेर के बैपटिस्ट मिशनरी जाॅन पारसन्स ने ही न्यू टेस्टामेंट का सफल रूप से प्रथम हिन्दी अनुवाद किया. ऐसे मुंगेर के एक अन्य बैपटिस्ट मिशनरी ए. लेसली द्वारा भी न्यू टेस्टामेंट के हिन्दी अनुवाद किये जाने की बात की जाती है. पर वस्तुत: वे भी इसके प्रारंभिक अनुवाद से ही संबंधित थे.

चर्च में पुराणी वर्तन

 

ओमेली के मुंगेर जिला गजेटियर (1909) के अनुसार ‘वर्तमान में जिस न्यू टेस्टामेंट का व्यहवार किया जाता है, वो मुंगेर के एक बैपटिस्ट मिशनरी द्वारा किया गया है.’ इस संदर्भ में 1960 में प्रकाशित मुंगेर जिला गजेटियर में जिक्र किया गया है कि ‘मुंगेर के एक मिशनरी के द्वारा न्यू टेस्टामेंट का हिन्दी अनुवाद इसका पहला हिन्दी अनुवाद है या नहीं, इस बात को स्थापित करने हेतु छान-बीन की गयी.’ तत्पश्चात् विलियम कैरी एवं लेसली के हिन्दी अनुवाद कार्यों की मीमांसा करते हुए उक्त गजेटियर आगे लिखता है कि पारसन्स के कब्र पर खुदे शिलालेख से ‘बेशक यह इंगित होता है कि न्यू टेस्टामेंट का पहला हिन्दी अनुवाद संभवतः पारसन्स द्वारा किया गया था, न कि एक. लेसली के द्वारा.’

इतिहास के महत्त्वपूर्ण पन्नों को संजोये है मुंगेर की मिशन कोठी:

मुंगेर के गंगा तट पर स्थित बैपटिस्ट मिशन, जहां बाईबल का प्रथम हिन्दी अनुवाद हुआ था और जो कि मिशन कोठी के नाम से जाना जाता है, भारत में चर्च के इतिहास व मिशनरी गतिविधियों का गवाह रहा है. एक समय यहां भारत में बैपटिस्ट मिशन की स्थापना करने वाले विलियम कैरी रहा करते थे. यह वो दौर था जब 1762 ई. में बंगाल के नवाब मीर कासिम ने अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से हटाकर मुंगेर को बनाया था.

ओमेली का मुंगेर जिला गजेटियर बताता है कि बैपटिस्ट मिशन की स्थापना 1816 में हुई थी जिसके अहाते में मिशन कैठी खड़ा है. इसका मुख्य भाग कभी मीर कासिम का सैन्य केंद्र हुआ करता था जहां से गंगा की तरफ से आनेवाले दुश्मनों पर निगरानी रखी जाती थी.इस सैन्य केंद्र में भूमिगत कमरें थे जहां से सुरंगें निकलती थीं जिनके अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं. मीर कासिम की पराजय के बाद अंग्रेजों ने इसे अपने अधीन लेकर इसका विस्तार कर मिशन कोठी का स्वरूप दिया.

मिशन कोठी पाश्चात्य और भारतीय वास्तुकला कला का अनूठा मिश्रण है. इसकी खासियत यह है कि इसका आकार स्टीमर के जैसा है जिसके उपर एक सपाट गुम्बद बना हुआ है जो तड़ित संचालक (लाइटनिंग कंडक्टर) का काम करता है.

पुराणी ग्रामाफोन जो आज भी चर्च में रखी हुई है

इस भवन की घुमावदार रेलिंग व बीच में बने रैम्प, छोटे-छोटे खड़े पायों वालीं बरामदे पर बनी रेलिंग तथा इसके चौकोर खंभे सादगीपूर्ण ढंग से निर्मित होने के बावजूद आकर्षक लगते हैं. जानकार बताते हैं कि मुंगेर के भूकंप प्रभावित क्षेत्र होने के कारण इसमें हावड़ा ब्रिज निर्माण की तकनीक अपनाई गई है और इसके भवन की छत व प्लिंथ को लोहे के फ्रेमों से बांधा गया है.

मिशन कोठी से जुड़ी हैं बैपटिस्ट मिशन के संस्थापक कैरी की यादें :

भारत में बैपटिस्ट मिशन की स्थापना करनेवाले विलियम कैरी (1761-1834) को ‘फादर आॅफ मिशन’ कहा जाता है. भारत में मिशनरी कार्यों के अलावे डिग्री कोर्स की शिक्षा व तकनीकी शिक्षा सहित भारतीय भाषा का पहला समाचार पत्र ‘समाचार दर्पण’ तथा अंग्रेजी दैनिक ‘स्टेट्समेन’ का प्रकाशन प्रारंभ करने के लिये भी उन्हें संजीदगी से याद किया जाता है. उन्होंने बनस्पति शास्त्र, समाज विज्ञान व साहित्य समेत 132 विषयों पर पुस्तकों की रचना की तथा 40 भारतीय भाषाओं में बाईबल का अनुवाद भी किया. देश में पहले बचत बैंक की शुरुआत करने के साथ यहां स्टीम इंजन लाने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है.

भारत में कोलकाता व श्रीरामपुर (तत्कालीन फ्रेडरिक नगर) सहित मुंगेर में भी कैरी ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण समय बिताये थे. मुंगेर की मिशन कोठी में कैरी के प्रवास-काल की ऐसी अनेक वस्तुएं हैं जो उनकी यादों को बरबस ताजा कर देती हैं.

मुंगेर में कैरी से जुड़ी यादों में सबसे महत्वपूर्ण ‘होली ग्रेल’ (पवित्र कटोरा)  है जिसे कैरी इंग्लैंड से लाये थे. करीब 5 किलो वजन वाला अष्टधातु से निर्मित बारीक कलाकारी वाला यह पात्र उस बर्तन की प्रतिकृति है जिसमें प्रभु यीशु ने अपना अंतिम भोजन ग्रहण किया था.

मुगेर चर्च परिसर में धर्म-गुरू जाॅन पारसन्स की कब्र.

जिस कमरे में बैठ कर कैरी अपना काम करते थे उसकी दीवाल पर उनकी तिजोरी चुनी हुई है जो बर्मिंघम के जाॅर्ज टीटरसेन कम्पनी द्वारा निर्मित है. यहां बेंत की बारीक कारीगरी वाली एक आराम कुर्सी भी रखी है जिसपर कैरी बैठा करते थे. यहां कैरी के समय की कई पुस्तकें और अभिलेख भी रखे हुए हैं. यहां करीब 75 साल पुराना एच.एम.भी. कम्पनी का एक पुराना ग्रामोफोन और ग्रामोफोन रेकार्ड रखे हुए हैं जिसे प्रभु यीशु के वचनों के प्रचार-प्रसार हेतु उपयोग में लाया जाता था.

दो सौ साल पुराना  है मुंगेर के बैपटिस्ट चर्च का इतिहास:

मुंगेर के बैपटिस्ट मिशन सोसायटी और मिशन कोठी की तरह यहां के बैपटिस्ट चर्च का इतिहास भी शानदार है. बीते समय में ईसाइयों का पसंदीदा शहर रहे मुंगेर के दो विशाल कब्रिस्तान भले ही आज जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पड़े हैं, पर यहां अवस्थित कब्रों की निर्माण-शैली यहां पर रहनेवाले यूरोपियनों के उच्च श्रेणी के जीवन-यापन की मिशाल पेश करते से नज़र आ रहे हैं.

बैपटिस्ट मिशन परिसर में अवस्थित यह चर्च आकार में उतना विशाल नहीं है, पर अपनी पुरातनता व विशिष्ट शैली के कारण महत्वपूर्ण है।.

यह भी एक विडंबना है कि इस चर्च का निर्माण दो बार हुआ है. प्रथमत: इसका निर्माण 16, मई, 1819 में हुआ जिसकी आधारशिला बैपटिस्ट मिशनरी जाॅन चेम्बरलीन द्वारा रखी गयी. पर 1934 में मुंगेर में आये भीषण भूकंप में यह पूर्णतः ध्वस्त हो गया. तत्पश्चात् पुनः 16 मई, 1936 को इसके पुनर्निर्माण की आधारशिला रखी गई जिसका विवरण चर्च की बाहरी दीवाल पर लगे शिलालेख में अंकित है.

इस चर्च के साथ ए. लेसली व विलियम मूर सरीखे धर्म प्रचारकों के नाम जुड़े हैं. लेसली जो संभवतः यहां के पहले पास्टर थे, 17 जुलाई, 1824 को मुंगेर आये थे और यहां 11 वर्षों तक रहने के बाद 24 जुलाई, 1870 को उनकी मृत्यु हुई.

इस चर्च के द्वितीय पास्टर विलियम मूर 40 वर्षों तक भारत में रहे और 68 वर्ष की आयु में 4 नवम्बर, 1844 में उनकी मृत्यु हुई. हर्षेल डियर नाम के पादरी ने अपने जीवन के अधिकांश भाग यहीं बिताये. उनकी मृत्यु 1887 में मसूरी में हुई, पर उनका शव मुंगेर लाकर दफनाया गया। डॉ. पी. पी. सिन्हा अपनी पुस्तक ‘मुंगेर थ्रू एजेज’ में बताते हैं कि मुंगेर कब्रिस्तान में मेजर जनरल चार्ल्स मूरे का भी कब्र है जो 1871 में यहां आकर बसे थे.


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