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निशु जी लोचन
बिहार में गंगा की मैदानी इलाके में कड़ाके की शीतलहरी के बीच ठिठुरते जिंदगी का आज की तारीख में क्या आलम है शायद इसका वेहद नजारा है नदी किनारे किसी श्मशान घाट. सनद हो जर्जर सरकारी सिस्टम इस विकट स्थिति में गरीबगुरबों के जिन्दगी को वेपटरी करने में मुख्य भूमिका निभाते है !
मृतक की मुक्ति की तलाश में आये उनके परिजन इस भीषण ठंड को मजवूरी में झेल तो लेता है पर चारोओर फैले कुव्यवस्था उनके परेशानी को कुछ ओर ज्यादा कर देता है.
यैसा कुछ नजारा है स्मार्ट सिटी भागलपुर के गंगा किनारे शमशान घाट जहाँ पर लाश के दाह संस्कार के लिए जगह की कमी हो गई है. बढ़ते ठंड की वजह से मारने वालों की संख्या बढ़ गई है. शमशान घाट बरारी में लाश की संख्या और उनके परिजन आज परेशान दिखे.
जबकि शमशान घाट बरारी में एक बेड वाला विद्युत शवदाह गृह भी है. लेकिन ज्यादातर समय मेंटेनेंस की जरूरत की वजह से बंद रखना पड़ता है. विद्युत शवदाह गृह के संचालक राहुल राय का कहना है कि स्मार्ट सिटी के रीभर फ्रंट के निर्माण कार्य की वजह से लाश जलाने की जगह छोटी पड़ गई है. स्मार्ट सिटी न तो विद्युत शवदाह गृह का नया निर्माण कर रही है और न ही लकड़ी से जलाने वाली जगह दे रही है.
शमशान घाट पर लाशों का ढेर है, ठंड की वजह से ग्रामीण इलाके के लोगों का इंतकाल ज्यादा हो रहा है. जबकि शहरी आबादी के बीच आलाव की व्यवस्था नाकाफ़ी दिखी. इस संवाददाता ने जब पूस के सर्द भरी बेदर्द रात में शहरी इलाके से लेकर शमशान घाट का जायजा लिया तो जिंदगी के सफ़र की सच्चाई के साथ साथ कहिये एक तरह से ध्वस्त हुए सरकारी तंत्र सामने आई.
सवारी के इंतेजार में एक गरीव रिक्शेवाले की ठण्ड से मौत इसकी की सबसे दुखद पहेलु रहा. यह नजारा समाज में फ़ैल चूका व्यापक विषमता और उदासीनता एक जीताजगता उदाहरण है.
“ यह समय एक तरह से प्राकृतिक आपदा है और सारे सरकारी व्यवस्था इस समय ध्वस्त है,” कहते है दिलीप कुमार जो बांका जिले के अमरपुर से शवदाह हेतु बरारी श्मशान घाट पर आये है.
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