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विक्रमशिला का उद्धार होना वाकी है .


नये निजाम के साथ जगने लगी है अंगभूमि भागलपुर की फिर से उम्मीदें

@news5pm

July 31st, 2017

शिव शंकर सिंह पारिजात/

सूबे में भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन के साथ नई सरकार बनने से प्राचीन काल में अंगभूमि के नाम से विख्यात भागलपुर की उम्मीदें फिर से जगने लगी हैं.

हलांकि इस प्रक्षेत्र का कोई सीधा प्रतिनिधित्व नये मंत्रिमंडल में नहीं है. बगल के बांका से बीजेपी के एमएलए राम नारायण मंडल नई सरकार में शामिल किये गये हैं. भागलपुर की यह विडंबना रही है कि इसके विधानसभा प्रतिनिधि रूलिंग पार्टी से अक्सर भिन्न ही रहे हैं, इस कारण यहां के मुद्दे अमूमन उपेक्षित-से ही रहे हैं. पर नई सरकार का आगाज़ ‘काम करनेवाली सरकार’ के संदेशों के साथ हुआ है, इस कारण यहां के लोगों को इतना उम्मीद करने का हक तो बनता ही है.

सनद हो की राजनैतिक अधिपत्य के कारण मगध शुरू से ही दुनिया के सामने बहुत सुन्दर रूप से उभर सका था. जब की अंग जिसका सभ्यता और सस्कृतिक मगध से कोई गुना ज्यादा था, राजनैतिक पकड से दूर रहने के कारण, दुनिया के सामने ठीक से अपना पहचान नहीं बना पाया. अतीक से आज तक अंग से साथ यही होता आ रहा; नालंदा को फिर से बनाया गया जबकि विक्रमशिला को उपेक्षित रखा गया. क्षेत्र के जनप्रितिनिधि को मंत्रिमंडल में सही जगह नहीं मिलने या उनका मंत्रिमंडल में कुछ नहीं चलने के वजह से न तो क्षेत्र का विकाश हुआ और न ही विक्रमशिला जैसा जगह का पुनरुत्थान हो पाया.

 

शयद अब इन नस्त हो रहे ऐतिहासिक और पुरातात्बिक अवशेषों का सरक्षण हो .

अंगभूमि भागलपुर के इतिहास पर गौर करें तो इसकी ऐतिहासिक विडम्बना रही है कि इसका अस्तित्व मगध से प्रचीनतम होने के बावजूद भी इसको अपना अपेक्षित राजनीतिक महत्व कभी न मिल पाया और इसकीआशाएं व आकांक्षाएं कभी भी सरकार की प्राथमिकताओं में शुमार न हो सकी. पाटलिपुत्र से प्राचीनतम नगर होने के बावजूद आज यह बेतरतीब अवस्था में पड़ा है. विकास के महती मुद्दों के अलावे भागलपुर ऐतिहासिक-सांस्कृतिक विरासतों की दृष्टि से इतना समृद्ध है कि यदि इन्हें थोड़ा-सा संवार दिया जाय तो न क्षेत्र विशेष का, वरन् राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पर्यटनस्थल के रुप में पूरे राज्य का ही चेहरा संवर जाय. यहां नालंदा की ही तरह ख्यात विक्रमशिला बौद्ध महाविहार अवस्थित है. जरुरत़ है इसे वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल करते हुए पर्यटन मानचित्र पर प्रमुखता से लाने की और केंद्र सरकार द्वारा घोषित विक्रमशिला केंद्रीय विश्वविद्यालय को सरजमीं पर उतारने की. भागलपुर के चम्पानगर में 12 वें जैन तीर्थंकर भगवान् वासुपूज्य की जन्मभूमि होने के कारण यह जैन धर्मावलंबियों का महत्वपूर्ण तीर्थ-स्थान है. यहां घटित बिहुला-विषहरी की लोकगाथा का अपना एक अलग आकर्षण है.  पूरे देश में इसकी पहचान सिल्क सिटी के रूप में है. जरूरत है इन्हें लाईमलाईट में लाने की.

बिहार सरकार के पुरातत्व विभाग ने अपनी टीम भेजकर पूरे भागलपुर प्रक्षेत्र के पुरातात्विक महत्व के स्थलों का विस्तृत सर्वेक्षण कराया है और ऐसे हजार के करीब स्थानों की पहचान भी की है. पुराविद् अरविंद सिंह राय के नेतृत्व में किये गये इस अन्वेषण की रिपोर्ट पर यदि विस्तृत खुदाई राज्य सरकार द्वारा कराई जाय तो भागलपुर ही नहीं राज्य के इतिहास के कई नये आयाम उद्भाषित होंगे.

 

पुरातत्वविदों द्वारा चिन्हित जगहो पर काम शुरू होने का उम्मीद जगी है .

सम्प्रति राज्य सरकार की प्राथमिकता में नालंदा, राजगीर, गया सरीखे स्थल शामिल रहे हैं. ठीक है ऐतिहासिक महत्ता के दृष्टिगत इनपर विशेष ध्यान दिया जाता रहा है. पर भागलपुर के विक्रमशिला एवं अन्य ऐसे महत्वपूर्ण स्थलों की उपेक्षा क्यों ? ये भी इनकी तरह ऐतिहासिक दृष्टि से समृद्ध एवं पर्यटकीय संभावनाओं से परिपूर्ण हैं. इनके भी दूरगामी राजनीतिक इम्प्लीकेशन हैं. इनकी उपेक्षा एक बड़ी आबादी की आशाओं व आकांक्षाओं की उपेक्षा होगी. और फिर सबका विकास भी तो सबके साथ ही होना चाहिये मसलन अगर विक्रमशिला को बौद्ध टूरिस्ट सर्किट से जोड़ा दे तो बौद्ध गया जैसा भागलपुर का विकास स्वत हो जायेगा.


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