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बौसी मेला की विहंगम दृश .
ब्यूरो रिपोर्ट/
आज (15 जनवरी को) बौंसी मेला का आकर्षण रहा भगवान मधुसूदन की शोभा यात्रा. इस अवसर पर बौंसी के अपने मंदिर से विष्णु स्वरूप भगवान मधुसूदन की प्रतिमा को रथ पर चढ़ाकर 5 किलोमीटर दूर मंदार पर्वत लाया गया. वहाँ काफी संख्या में लोग इनकी पूजा-अर्चना करते है.
इस अवसर पर श्रद्धालुगण प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर पर्वत के नीचे स्थित पापहरणी में स्नान करने के उपरांत इनकी पूजा करते हैं.
मंदार के नीचे पूर्वी भाग में इनका एक प्राचीन मंदिर है जहां इनको रखे जाने की परंपरा है. यह मंदिर एक चबूतरे पर अवस्थित है जिस पर चढ़ने के लिए पूरब और पश्चिम की ओर से सीढ़ियाँ बनी हैं. इसकी छत गुंबदनुमा है जिससे पता चलता है कि इसे मुगल काल में बनवाया गया है.
मंदिर पर लगे पत्थर के एक शिलालेख के अनुसार छत्रपति ने इसका निर्माण सन 1599 में कराया था. सर्वेयर फ्रांसिस बुकनन हेमिल्टन ने स्थानीय लोगों से पूछकर लिखा है कि ये वही छत्रपति हैं जिन्होंने सबलपुर ग्राम बसाया.
भगवान मधुसूदन की प्रतिमा लगभग 3 फीट की काले पत्थर की है. कहा जाता है कि दशरथ पुत्र श्रीराम ने इस प्रतिमा को बनवाया है. हालाँकि, इतिहासकारो के अनुसार यह प्रतिमा पाल कालीन है.
मुगलों के आक्रमण के बाद देव मधुसूदन को पर्वत के शीर्ष के मंदिर से उतारकर 5 किलोमीटर दूर बौंसी लाकर स्थापित कर दिया गया. तभी से उनका मंदिर बौंसी में ही मेला स्थल के सामने है. अब वे यहाँ से प्रतिवर्ष मकर संक्रांति को मंदार पर्वत के नीचे स्थित अपने मंदिर में जाते हैं और संध्याकाल से पूर्व ही पुनः लौट आते हैं.
प्राचीन काल में बौंसी_मेले की शुरुआत मकर संक्रांति की मधुसूदन देव की शोभा यात्रा से ही होती थी मगर अब यह मेला 14 जनवरी से ही आरभ हो जाता है जबकि परंपरानुसार भगवान की शोभा यात्रा तो मकर संक्रांति पर ही होती है.
धार्मिक मान्यताओ के अनुसार समुद्र मंथन की कथा के अनुसार इसमें प्रयुक्त मंदार या मंद्राचल पर्वत से ही देव और दानवों की कोशिश से सबसे अंत में अमृत कुम्भ लेकर वैद्य देव धन्वन्तरी निकले.
अमृत कुंभ के निकलते ही देवताओं के इशारे से इंद्रपुत्र ‘जयंत’ अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गया. उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेशानुसार दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए जयंत का पीछा किया और घोर परिश्रम के बाद उन्होंने बीच रास्ते में ही जयंत को पकड़ा. तत्पश्चात अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव-दानवों में बारह दिन तक अविराम युद्ध होता रहा.

मधुसूधन की प्रतिमा को शोभा यात्रा में ले जाते हुए.
इस परस्पर मारकाट के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर कलश से अमृत बूँदें गिरी थीं. उस समय चंद्रमा ने घट से प्रस्रवण होने से, सूर्य ने घट फूटने से, गुरु ने दैत्यों के अपहरण से एवं शनि ने देवेन्द्र के भय से घट की रक्षा की. कलह शांत करने के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर यथाधिकार सबको अमृत बाँटकर पिला दिया. इस प्रकार देव-दानव युद्ध का अंत किया गया.
कहा गया है कि अमृत प्राप्ति के लिए देव-दानवों में परस्पर बारह दिन तक निरंतर युद्ध हुआ था. देवताओं के बारह दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के तुल्य होते हैं. अतएव कुंभ भी बारह होते हैं. उनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर होते हैं और शेष आठ कुंभ देवलोक में होते हैं, जिन्हें देवगण ही प्राप्त कर सकते हैं, मनुष्यों की वहाँ पहुँच नहीं है.

मधुसूधन की भव्य शोभा यात्रा.
जिस समय में चंद्रादिकों ने कलश की रक्षा की थी, उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चंद्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं, उस समय कुंभ का योग होता है अर्थात जिस वर्ष, जिस राशि पर सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का संयोग होता है, उसी वर्ष, उसी राशि के योग में, जहाँ-जहाँ अमृत बूँद गिरी थी, वहाँ-वहाँ कुंभ पर्व होता है.
मंदार क्षेत्र में तो स्वयं अमृत प्रकट हुआ लेकिन यहाँ कुम्भ का मेला नहीं लगता जबकि यहाँ के मनोहरकुंड, पुष्करणी या पापहरिणी को पवित्र मानकर स्नान-दान की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है.
एक अन्य धार्मिक मान्यता के अनुसार असुराधिपति मधु का वध कर मधुसूदन कहलाने वाले भगवान विष्णु आज तक उसे दिये उस वचन को पूरा कर रहे हैं , जो मरते वक्त मधु ने उनसे लिया था कि हर मकर संक्रांति पर वे उसे दर्शन देने वालिसा नगरी ( बौंसी ) स्थित मंदिर से चल कर मंदार तक आएंगे. सदियो से चले आ रहे परम्परा के अनुसार, बाजे -गाजे और लोगों के जयकारे के बीच हर वर्ष की तरह आज भी रथ यात्रा निकली और मंदार तले दबी असुर मधु की आत्मा को दर्शन – लाभ दे कर उसे दिये वचन को पूरा करने का चले आ रहें रीति आज पूरा होते देखा गया. पुराणों में वर्णित इस कथा और विश्वास की जमीन पर लोट – पोट होती यह मान्यता आज तक रथ यात्रा के रूप में बेरोक – टोक जारी है , जिसमें सम्मिलित होने की लोग साल भर तक इस दिवस की प्रतीक्षा करते हैं.
(विशेष सहयोग – उदय शंकर & राजेंद्र सिंह )
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