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शिव शंकर सिंह पारिजात/
मधुवनी पेंटिंग अगर विश्व में उभर सकता है तो मंजूषा क्यों नहीं ? मंजूषा की विरासत काफी प्राचीन है तथा इसमें भी कुछ विशेषताए है ज्यो लोगो को आकर्षित भी आसानी से करती है. तो क्यो नहीं ..?
इन्ही बातो को लेकर नये साल की पूर्व बेला में 29-30 दिसम्बर, 18 को उपेन्द्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान, पटना के द्वारा बिहार सरकार के उद्योग विभाग एवं भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय के संयुक्त तत्वाधान में ‘मंजूषा शिल्प: वर्तमान और भविष्य’ विषयक दो दिवसीय परिसंवाद-सह-कार्यशाला में कला एवं शिल्प के विकास हेतु जिम्मेवार अधिकारियों, वित्तपोषण करनेवाली संस्थानों, कला विशेषग्य तथा साहित्यकारों व मंजूषा कलाकारों-शिल्पकारों ने गंभीर विमर्श कर इसके चतुर्दिक विकास की रूप-रेखा गढ़ी. संकल्प बना कि शोला-सनाठी-कागच और गांव-ग्राम के दायरे से निकलकर ड्राईंग रूम, इम्पोरियम व पांच-सितारा होटलों में सजने को बेताब मंजूषा शिल्प-कला का आधुनिक तकनीकों के साथ फ्यूजन कर इस वैश्वक पहचान दिलाने की कवायद की जाय.
संकल्प लिया गया कि मंजूषा शिल्प के कलात्मक स्वरूप को निखार कर इसे अंतराष्ट्रीय पहचान दिलाने के साथ इसे वैश्वक व्यवसाय के साथ जोड़ने के प्रयास किये जांय. उपेन्द्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान के विकास पदाधिकारी अशोक कुमार सिन्हा ने कहा कि मंजूषा आर्टिजनों को मूलभूत सुविधा एवं प्रदान कर उन्हें सशक्त बनाया जायेगा तथ कॉमन फैसिलिटी सेंटर के माध्यम से इसे देश के सभी क्षेत्र के स्टॉलों तक पहुंचाया जायेगा. उन्होंने आशा व्यक्त की कि वो दिन दूर नहीं जब मंजूषा कला अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनायेगी और इसके शिल्पकारों की आर्थिक दशा मजबूत होगी.
संगीत-नाटक अकादमी के उप सचिव सुमन कुमार ने कहा कि मंजूषा यूनेस्कों के सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल होने की सारी अहर्ताएं रखता है. इस बाबत मंजूषा कलाकारों-शिल्पकारों के डाटाबेस बनाने व मंजूषा म्यूजियम बनाने की आवश्यकता पर भी उन्होंने बल दिया. कहा कि बंगाल-असम से लेकर नॉर्थ- इस्ट के भागों और चीन तक इस कला का स्वरूप दिखता है.
इस कार्यशाला में अग्रणी बैंक प्रबंधक (एलडीएम) सहित बैंक व नाबार्ड के अधिकारियों तथा जिला उद्योग प्रबंधक ने न सिर्फ शिल्पकारों को दिये जाने वाले लोन-सहायता की जानकारी दी, वरन् समुचित वित्तपोषण का भी आश्वाशन दिया. कला विशेषग्यों व मार्केटिंग एक्सपर्टों ने कला एवं व्यवसाय के गुर बताये.
बिहुला-विषहरी की लोकगाथा पर आधारित मंजूषा के साथ कला-व्यवसाय के साथ नारी सशक्तिकरण का आयाम भी जुड़ा है क्योंकि इसके साथ अधिकांशत: महिलाएं इसस् जुड़ी गाथा की नायिका सती बिहुला से प्रेरणा ग्रहण करती हैं। मंजूषा सशक्त होगा तो महिलाएं भी सशक्त होंगी.
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