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ब्यूरो रिपोर्ट
सूबा बिहार में बापू के चम्पारण-सत्याग्रह का उत्सवी माहौल में आजादी की लड़ाई के इतिहास का एक वाकया बरबस याद आ जाता हैः ब्रिटिश हुक्मरान गांधी-टोपी देखकर बिदककर डर जाते थे – कोई ‘स्वराजी’ तो नहीं। भागलपुर में पिछले रविवार 9 अप्रैल को मोजाहिदपुर थाना क्षेत्र के बाल्टी कारखाना चौक के पास स्थित एक धार्मिक स्थल पर शरारती तत्वों द्वारा अल सुबह अपवित्र सामान फेंके जाने से उत्पन्न स्थिति से निपटने हेतु प्रशासन द्वारा उठाये गये ऐहतियिती कदमों में एक सोशल मीडिया पर अंकुश हेतु इंटरनेट सेवा बंद करना था। मानों हुक्मरानों की नजर में आज के आजाद भारत में सोशल मीडिया यूजर्स कोई शरारती तत्व हों।
जिला प्रशासन के आदेश से रविवार दिन के 11.30 बजे से जो इंटरनेट सेवा बंद हुई , तो तीन दिनों बाद आज 11 अप्रैल के दोपहर को जाकर बहाल हुई। इस बीच इंटरनेट सेवा के बंद रहने से अफवाहों पर कितना अंकुश लगा, यह तो पता नहीं, पर लोगों को बेइंतिहां परेशानियां झेलनी पड़ी। सूचनाओं के आदान-प्रदान के अभाव में लोग खुद की बनाई कहनियां टेलीफोन-मोबाईल पर दोस्तों-रिश्तेदारों से शेयर करते रहे। एटीएम पैसे उगलने बंद करने लगे। लोग एक एटीएम से दूसरे एटीएम के चक्कर लगाते दिखे। कैफेवालों की परेशानियों को तो सहज समझा जा सकता है। कई लोग इस बात को लेकर परेशान दिखे कि उनका रेलवे टिकट किसी मित्र-रिश्तेदार ने करवाया था, पर ईमेल पर उसकी सूचना नहीं मिल पा रही। फेसबुक, व्हाट्सएप, मेल आदि नहीं रहने से दिल की कई बातें दिल में ही रह गयीं। आज के फास्ट युग में इंटरनेट का कितना विस्तारित रूप से उपयोग हो रहा है, उसकी एकबारगी से हम कल्पना भी नहीं कर सकते। इस तरह नेटवर्किंग ब्लॉक कर देने किस किस को क्या क्या परेशानियां झेलनी पड़ी, इसका कोई जवाब भी देगा और जिम्मेवारी भी लेगा क्या।
किसी भी तरह की साम्प्रदायिक स्थिति से निपटने के लिये अंततः प्रशासन की अपनी सूझबूझ ही काम करती है। अफवाहों के जहर को फैलने से रोकने हेतु सिर्फ सोशल मीडिया पर बैन लगाने से काम नहीं चलेगा। अगर अफवाह फैलाने की शक की बिना पर इसपर बैन लगाया है तो इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि यह प्रेम-सद्भाव बांटने का एक सशक्त जरिया भी है। फिर कोई घटना होने पर सबसे पहले सामाजिक संगठनों को याद किया जाता है। शांति समितियों की बैठकें बुलाई जाती हैं। शांति-सद्भाव फैलाने का यह कार्य सोशल मीडिया से भी लिया जा सकता है। अफवाहों को काऊंटरएक्ट करने का भी ये मजबूत माध्यम साबित हो सकती हैं। फिर आज के बहुआयामी संचार युग में सामाजिक- संचार उपकरण अर्थात सोशल मीडिया से इतनी बेरूखी क्यों ? मीडिया चाहे प्रिंट हो, इलेक्ट्रॉनिक हो या सोशल- इनपर हाथ डालने से पहले थोड़े ठंडे मिजाज से सोचना होगा; क्योंकि ये खुद सुपर सेंसेटिव होते हैं।
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