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सुल्तानगंज में दुर्लभ शिलालेखो को बर्बाद किया जा रहा है.
निशु जी लोचन/
तकरीबन 1000 साल पुराना भागलपुर का कल्चरल हेरिटेज इन दिनों बर्बादी के कगार पर है!
राज्य और केंद्र सरकार का पुरातात्विक विभाग कोशिश जरूर कर रही है कि पुरातात्विक अवशेषों की बर्बादी और चोरी रुके लेकिन मतलबी और लालची प्रवृति में सबकुछ बर्बाद हो रहा है. भागलपुर से 60 और सुल्तानगंज से 25 वेशकीमती पुरातात्विक मूर्तियां गायब या चोरी हुई हैं या यों कहें अपनी धरोहर को चोरी कर बेचने की परंपरा बढ़ सी गई है. बिहार सरकार के आर्कियोलॉजिस्ट अरविंदो सिन्हा रॉय पिछले कई दिनों से भागलपुर इलाके में फैले लगभग 210 एकड़ जमीन के अंदर पुरातात्विक अवशेष को ढूंढ रहे हैं. जिन्हें 50 वैसा टीला मिला है जो 1000 साल पुराना है. धर्म के साथ धरोहर की तलाश में प्रधान आर्कियोलॉजिस्ट अतुल वर्मा के निर्देश पर हड़प्पा, इंडस वैली, महाभारत, मौर्य , पाल और गुप्त काल के अवशेषों पर काम कर रहे हैं.
यहाँ कहना उचित है की सिन्हा रॉय के अनुसार पूरा सुल्तानगंज का इलाका जो टीला के ऊपर है, आपनी गर्भ में बहूत बड़ा अतीत छिपा रखा है, अगर उठ्खनन किया गया तो दुनिया के सामने एक बहूत बड़ा चौकनेवला तथ्य पेश होगा.
बातचीत के क्रम में बताते हैं अभी श्रावणी मेले के दौरान सुल्तानगंज में दर्शनीय और पूजनीय अजगैबीनाथ पहाड़ी के बाहरी परिसर में उकेरा गया कल्चरल हेरिटेज रिलीफ अब बर्बादी के कगार पर है. मंदिर प्रबंधन बेतरतीब तरीके से निर्माण कार्य करा रही है नतीजा वहां धर्म के आड़ में धरोहर बर्बाद हो रहा है. पाल काल के समय मे पहाड़ी पर उकेरी गई आकृति आज भी पर्यटकों के लिए बड़ा आकर्षण है. लेकिन ताज़ा हालात तो देखिए. जूठन के बीच मे धरोहर दिख रहा है. मज़दूर उसे ढक भी रहे हैं. यहां कल्चरल हेरिटेज को बर्बाद किया जा रहा है. वैसे तो बिहार में नवादा और नालंदा के बाद भागलपुर में अभी सरकार का पुरातत्व विभाग ज्यादा सक्रिय है. लेकिन आम आदमी के पास एकत्रित किये गए धरोहर को लेने का सही प्रवधान नहीं बना पाई है. तब जब मुगल काल में धार्मिक स्थल पर हमला किया जाता था तो इलाके के लोग मूर्तियों को तालाब में फेंक देते थे जो आज भी गाहे बगाहे मिलते हैं.

धर्म के लिए आज पुरातत्व का कोई मूल्य नहीं रह गया.
लेकिन अब तो मतलब और लालच में आकर अपने धरोहर को चोरी छुपे बेचने लगे हैं. जमुई के लछुआड़ की घटना उसका उदाहरण है. सिर्फ भागलपुर ज़िले से पिछले कई वर्षों में 85 मूर्तियां चोरी छुपे बेच दी गई हैं. यानी कहें तो धरोहर कहीं भी सुरक्षित नहीं है. भागलपुर म्यूजियम के अंदर पानी का रिसाव धरोहर को बर्बाद कर रही है. बाहर पड़े धरोहर को पुरामाफ़िया बेच रही है. और जो पहाड़ियों और कंदराओं में उकेरी गई धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान है उस पर मठाधीश की मनमानी है. नतीजा धर्म और धरोहर दोनों बर्बाद हो रही है.
घटनाक्रम में अभी भागलपुर में दो पुलिस के वरीय पदाधिकारी संयोग से इतिहास प्रेमी होने के साथ साथ इतिहास के काफी जानकर भी है. डी.आई.जी, भागलपुर आपना फेस बुक वाल पर समय समय में इलाके के वारे इतिहास संबधित जानकारी पोस्ट करते रहते है. जवकि एस.एस.पी, भागलपुर को भी इलाके के इतिहास में काफी दिलचस्पी है. दोनों पदाधिकारी को इलाके में इस तरह हो रहे बरबादियो से वाकिफ है और उनके कानो में इसका खबर भी करवाया गया है, पर अव तक कोई कारवाई नही हुई है.
इस संबंध में जन-जागरण भी आवश्यक होगा। इस प्रकार के लेख से आम जनता में धरोहरों के प्रति रूचि जगती है तथा उन्हें इसके सांस्कृतिक मूल्य का ज्ञान भी होता है। समयोचित लेख के लिए बधाई!