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रमन सिन्हा/
प्रबल पराक्रमी मौर्य सम्राट अशोक अपने माता जो चंपा (भागलपुर) की रहेनेवाली थी से संस्कार प्राप्त किये थे. एक प्रबल योद्धा से गौतम बुद्ध का केवल अनुयाई ही नही वल्कि पुरे बिश्व में बौद्ध धर्म का प्रचलन करवाने का इतिहास रचने वाले सम्राट अशोक की जीवनशैली में चंपा की खुशबू सदा महकते रहा.
हवदार त्रिपाठी सह्रदय एवं पी. सी. रायचौधरी के अनुसार मौर्य शासक अशोक महान की माता ” सुभद्रांगी ” , चंपा निवासी एक ब्राह्मण की रुपवती कन्या थी. वह गुणी एवं संस्कारवान कन्या थी. माता के प्रभाव से ही वह कालान्तर में धर्म प्रेमी एवं मानव प्रेमी हो गया.
भगवान बुद्ध के समय बौद्ध धर्म का प्रचार मगध, अंग, वज्जि, मल्ल, कोशल, वत्स तथा अवंति महाजनपदों तक ही सीमित रहा. किन्तु सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को अन्तर्राष्ट्रीय धर्म बनाया और भारत में राष्ट्र धर्म बनाकर संसार के गौरव गिरि के शिखर पर प्रतिष्टित किया. अशोक वस्तुतः मानव धर्म उपासक था.
धैर्यवान, मानव प्रेम, सांझा – संस्कृति प्रतीक था एवं है. वर्त्तमान बिजली संकट, जल संकट, सड़क संकट सहित राजनीतिक उपेक्षा का दंश झेल रहा जैसे अन्य संकटों से गुजर रहे हैं अंगवासी. अंग के सभी जाति, धर्म एवं कर्मों वाले लोगों का धैर्य देखिये कि दसकों से कष्ट एवं संकट झेल रहे लोग वडा आन्दोलन नहीं किया है. मात्र छोटे मोटे विरोध ही होते रहे हैं. धैर्य का सबसे बडा उदाहरण सरकार द्वारा यहाँ विक्रमशिला के घोर उपेक्षा होने के बाद भी भागलपुर के जनमानस अभी तक आपना आपा नहीं खोया है.
यही धैर्य का पाठ अपनी माता सुभद्रांगी से सम्राट अशोक को मिला, तभी तो वह बौद्ध धर्म का संरक्षक बना साथ ही साथ मानव प्रेमी भी बना. कालान्तर में ही सही वह अहिंसा का पुजारी बना. यह देन चंपा हरे भरे चंपा फूलों एवं चंपा के मिट्टी की खूशबू से हुई. वही खूशबू सम्राट अशोक ने फैलायी. धन्य है अंग जनपद के धैर्यवान लोग. धन्य है चंपा एवं अंग.
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