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जी का जंजाल बना बादलडीह पुल का निर्माण न होना.


बादलडीह पुल का अबतक नहीं होना : एक बडा आवादी को इसवार भी तैरना होगा; नक्सालियो को भी पूरा मौज!

@news5pm

July 2nd, 2017

ब्यूरो रिपोर्ट/   

बिहार के सुदुए ग्रामीण क्षेत्र में बिकाश का क्या नजारा है यह सुवे की दंभ भरनेवाले सरकार की पोल खोलने में काफी है!

पूर्बी बिहार के जमुई-नवादा सीमा पर स्थित बादलडीह पुल का निर्माण बारह वर्षों बाद भी पूरा नहीं हो सका है, लिहाजा इस बरसात में भी लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ेगा. केवल ग्रामीणों की बात नही, उग्रवाद प्रभाबित क्षेत्र में इस पुल नही होने से यहाँ के पुलिस सहित तमाम अध्य्सैनिक बलों को क्या परेशानी का सामना करना पड रहा है इसका खबर राज्य मुख्यालय को रहेते हुए भी इस मुद्दे पर चुप्पी साध लेना क्या दर्शा रहा है ?

माओवादी के गढ मानेजानेवाला इस इलाके के आधा दर्जन गांवों के लोगों का संपर्क बरसात के मौसम में प्रखंड मुख्यालय से इस बार भी टूट जाएगा.  बताते चलें कि वर्ष 2005 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने करोड़ों की लागत से किऊल नदी घाट पर बनने वाले पुल की आधारशीला रखी थी. नक्सलियों व अपराधियों की नजर इस पर पड़ गई, उन्हें नागवार गुजरा यह पुल का निर्माण होना. यह पुल बनने से इलाके के सीधा सम्पर्ख बगल के झारखण्ड के गिरिडीह से हो जायेगा और पुलिस आदि के लिए पुरे इलका आसानी से आने जाने के लिये खुल जायगा. अभी इस पुल नही होने के कारण  इस क्षेत्र दुर्गम माना जाता है और नाक्सालीयो आसानी से पुलिस की आखों में धुलझोक कर रफूचक्कर हो जाता है कोई भी घटना का अंजाम देकर.

उन्होंने द्वारा कई बार मजदूरों के साथ मारपीट व उन्हें अगवा किए जाने की घटना के बाद निर्माण कार्य बंद हो गया. 2015 में लच्छुवार  जन्मस्थान से भगवान महावीर की मूर्ति चोरी की घटना के बाद जमुई पहुंचे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उक्त पुल का हवाई सर्वेक्षण किया था. मौके पर उन्होंने डीएम व एसपी  से पुल के संबंध में चर्चा भी की थी. फिलहाल पुलिस अभिरक्षा में पुल का निर्माण तो चल रहा है पर कार्य इतना धीमा चल रहा है कि बरसात से पूर्व इसका बन पाना संभव नहीं है.

“एक तरफ पार्टीवालों (नक्साली) और दूसरी तरफ पुलिस. बीच में फसे ग्रामीणों जिन्हें आज भी पैदल मंजिल चाहे आस्पताल हो या दूर के कचहरी हो, तय करना होता है. उपर से वारिश के दिनों में अलग से तैर के इस इलका जो टापू में बदल जाता है, आना पडता है,” दिनेश कुमार, एक ग्रामीण कहते है. पुल निर्माण कार्य पूरा नहीं होने के कारण हड़खार पंचायत के चनरवर, रोपावेल, बरदोन, रजला, सिरिसिया सहित आधा दर्जन गांव के लोगों को बरसात के मौसम में काफी परेशानी का सामना करना पड़ेगा।.उनके लिए प्रखंड मुख्यालय आने का एकमात्र साधन नाव होगा, क्षेत्र में अनेक यैसे भी है जिन्हें पैसे नहीं रहेने के कारण तैरना पडता है.

कहते है इस पुल की निर्माण हो जाने के बाद बिहार के जमुई, नवादा व झारखंड के गिरिडीह जिला का सीधा संपर्क संभव हो पाएगा और आवागमन सुगम हो सकेगा. साथ ही इलाके के विकास में पुल सार्थक साबित होगा. “ पुल का निर्माण हो जाने से क्षेत्र में विकाश के साथ साथ आवागमन का सुबिधा प्राप्त होगा. पर उग्रोवादिओ को इस प्रकार के विकाश से डर है, विकाश होने से उनके दुकानदारी बंद होने का शत प्रतिशत उम्मीद है,” एक पुलिस ऑफिसर बेहिचक कहते है. पर जब  उनसे यह सवाल किया जाता है की आखिर सरकार काहे आखं बंद कर रखी है, क्या पुल नहीं होने से सरकारको नुकसान नहीं हो रही है, उक्त पुलिस ऑफिसर चुप्पी साध लेना ज्यादा श्रेय्षाकर समझते है. बताते चले की क्षेत्र के किसी भी जनप्रतिनिधि आज तक शयाद इस पुल के वारे कुछ कहे हो !


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