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झारखण्ड के इकलौते पक्षी अभ्यारण्य कितना महफूज है विदेशी मेहमानों के लिए ?

@news5pm

January 19th, 2021

नीरज/ ब्यूरो

चिरहरित राजमहल पहाड़ी श्रृखंला की तलहटी में ठंड आते ही मेहमान पक्षीयो की झुंड का आगमन बूम पर है.

हालाँकि झारखण्ड जैसे राज्य में वन्य जीव संरक्षण प्रबंधन के नहीं रहने के चलते विदेश के दूर दराज प्रांतों से आये यह मेहमान पक्षी कितना सुरक्षित रह पता है, यह आपने आप में एक यक्ष प्रश्न है.

राजमहल पहाड़ी श्रृखंला व गंगा नदी के तट पर पक्षी अभ्यारण्य पतौड़ा झील उधवा प्राकृतिक सौंदर्य एवं अद्भुत भौगोलिक संरचना के कारण विश्व प्रसिद्ध है. प्राकृतिक सौंदर्य का वरदान उक्त अभ्यारण्य झारखण्ड के साहिवगंज जिले की राजमहल अनुमंडल में एन एच 80 के किनारे उधवा के समीप बसा है.

झारखंड राज्य का उधवा झील पक्षी आश्रयणी पतौड़ा झील एवं बरहेल झील को मिलकर बना है. पतौड़ा झील लगभग 156 हेक्टेयर भूमि पर अवस्थित है. दूसरी तरफ ब्रम्ह जमालपुर झील जो 410 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ है. ब्रम्ह जमालपुर झील को बढ़ैल या बड़का झील भी कहते हैं. राजमहल की पहाड़ियों के बीच लगभग 5.65 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में उधवा का पक्षी आश्रयणी है. दोनों झीलों को उदयनाला (मीरकाशिम के युध्य क्षेत्र) के माध्यम से गंगा नदी से साल भर पानी मिलता रहता है. शीत ऋतु और बरसात के मौसम में बढ़ैल और पतौड़ा झील आपस में जुड़ जाते हैं. कई प्रवासी, अप्रवासी पक्षी और द्रुलभ प्रजाति के पक्षी यहाँ जलक्रीड़ा करते हैं.

मध्य एशिया से दिसंबर और मार्च के महीने में कई प्रवासी पक्षी आते हैं और इस झील की खूबसूरती को और बढ़ा देते हैं. दोनों झील के प्राकृतिक सौंदर्य दृश्य अप्रवासी एवं प्रवासी पक्षियों को लुभाते हैं और वे स्वयं को यहाँ सुरक्षित महसूस करते हैं. शीत ऋतु में लगभग 80 प्रजातियों के प्रवासी और अप्रवासी पक्षी यहाँ पाए जाते हैं और इनमें से कई दुर्लभ प्रजाति के हैं.

पतौड़ा झील झारखंड राज्य का एकमात्र पक्षी अभयारण्य और प्रवासी पक्षियों को आश्रय देने वाला प्राकृतिक घर है. जिस पर इनदिनों राजमहल की पहाड़ी श्रृंखला पर पत्थर माफियाओं

द्वारा दोहन और पहाड़ी से पत्थर खनन से निकलने वाले कचरें का निस्तारण नदी मे करने से प्रवासी पक्षियों के अनुकूल नही रहा पतौड़ा झील का वातावरण. अब लोग नए साल मे पिकनिक मनाने पहुंचते है. प्रशासन भी झील से होने वाले पक्षियों के शिकार को रोकने को तत्पर दीखते नहीं है.

दोनों झीलों के आसपास पेड़ो की कटाई होने के चलते इन मेहमान पक्षी का रैनवसेरा लगभग समाप्त हो गया था पर वन विभाग द्वारा पुनः पेड़ लगाने पर इनके अस्थायी आवास का व्यवस्था करवा दिया गया है.  बताते चले की पिछले 15-20 साल लगातार अवैध धुसपैठ के सिलसिले के चलते, इलाके में पेड़ो की कटाई हुई है. साथ ही साथ इन प्रवासी पक्षीओ का शिकार भी होता आ रहा है.

जानकारों का मानना है की राज्य के इस तरह संरक्षित वनों के लिए कोई वन्य प्राणी प्रबंधन नीति के लागु न होने के चलते पतौड़ा/उधवा  झील पक्षी अभ्यारण्य अब विदेशी पक्षियों के लिए अनुकूल नहीं है. सम्प्रति  भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के मेनेजमेंट एफ्फेक्टिव्नेस इवैल्यूएशन (एम् इ इ ) रपट के अनुसार झारखण्ड में वन्य प्राणी प्रबंधन नहीं होने के कारण वन एवं वन्य प्राणियों पर प्रतिकूल असर हो रहा है.


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