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ब्यूरो रिपोर्ट/
भारत में बहुत कम ऐसे पत्रकार हैं जो किसी अखबार से जब वह रिटायर हो जाते हैं तो उसके अन्दर की बात एक पुस्तक के रूप में लिखते हैं और वो भी हिंदी भाषा में.
हाल ही में मद्रास के Notion Press ने हिंदुस्तान टाइम्स के पूर्व सीनियर रिपोर्टर ब्रजेश वर्मा की एक किताब “हिंदुस्तान टाइम्स के साथ मेरे दिन” प्रकाशित की है जिसमें लेखक के लगभग 27 साल की पत्रकारिता का अनुभव समाया है.
बिहार के भागलपुर से अपनी पत्रकारिता की शुरुआत करते हुए लेखक ने पटना के नवभारत टाइम्स और हिन्दुस्तान टाइम्स (पटना, रांची और दुमका) में काम किया.
इस पुस्तक (हिन्दुस्तान टाइम्स के साथ मेरे दिन) में पत्रकारिता से जुडी महत्वपूर्ण बातें एकदम बेबाकी से लिखी गयी है जिसमें यह सावित करने की कोशिश की गयी है कि एक पत्रकार जो छोटे स्थानों से रिपोर्टिंग करता है उसके सम्बन्ध संपादकों के साथ कैसे होते हैं.
पुस्तक पढ़ने से यह साफ़ जाहिर होता है कि उस पत्रकार ने कभी भी कोई समझौता नहीं किया –चाहे वह रिपोर्ट हो या फिर संपादक. जीवन में एक समय ऐसा भी आया जब उसे नौकरी से हटाने के लिए हिंदुस्तान टाइम्स के एक सम्पादक और सीनियर रिपोर्टर ने भरपूर कोशिश की लेकिन उसने ये सारी बातें अपने प्रधान संपादक और कंपनी के सीईओ को दिल्ली में लिखकर भेजा और आखिरकार विजय उसी की हुई.
बहुत कम पत्रकार होते हैं जो ऐसे कदम उठाने की साहस करते हैं.
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डॉ ब्रजेश वर्मा
इस पुस्तक में हिंदी और अंग्रेजी पत्रकारिता, ख़ास कर बिहार और झारखण्ड में, के तौर तरीके की जबरदस्त तरीके से पोल खोल कर रख दी गयी है. छोटे जगहों में काम करने वाले पत्रकारों को अखबार अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करता है, जबकि कई ऐसे पत्रकार हैं जो अपना जीवन ही अखबार के लिए लगा देते हैं पर अंत तक उन्हें कुछ भी हासिल नहीं होता. फायदा सिर्फ कंपनी को होता है.
ब्रजेश वर्मा में अपनी पुस्तक “हिन्दुस्तान टाइम के साथ मेरे दिन” में अपने उन मित्रों को भी खूबसूरती से याद किया है जो पत्रकारिता के दौरान उनके साथ रहे. इस पुस्तक में झारखण्ड के संथाल परगाना के कठिन रिपोर्टिंग की भी चर्चा है साथ ही बिहार और झारखण्ड की खोज भी की गयी है. एक पत्रकार का व्यक्तिगत जीवन कैसा होता है उसे बेबाकी से दर्शाया गया है, जो किसी भी लेखक के लिए लिखना सबसे कठिन होता है.
पुस्तक “हिन्दुस्तान टाइम्स के साथ मेरे दिन” दुनिया के कई साईट पर उपलब्ध है –जैसे amazon.com, फिलिफकार्ड, गूगल, और Notion Press के biography section में. किताब की कीमत है मात्र 150 रुपया. किन्तु इसके विदेशी संसकरण की कीमत 8.99 डॉलर है. हिंदी भाषा में लिखी गयी इस पुस्तक को काफी रोचक तरीके से लिखा गया है जिसे खासकर जिले में काम करने वाले पत्रकारों को पढने की सलाह दी जाती है, जिसमें वे अपना दुःख और सुख दोनों पा सकेंगे.
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