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भागलपुर शहर के पास गर्गरा पुष्करिणी तालाब जंहा गौतम बुद्ध ने वर्षावास किए थे.


सन्दर्भ भगवान बुद्ध और भागलपुर : चंपा के गर्गरा पुष्करिणी सरोवर पर बुद्ध की उपस्थिति में हुई थी बौद्ध संगीति

@news5pm

June 18th, 2017

रमन सिन्हा/   

चांदन नदी स्थित भदरिया से गौतम बुद्ध अपने चुनिन्दा पांच सौ शिष्यों के साथ चंपा के गर्गरा पुष्करिणी तालाब के पास वर्षावास किए. चंपा को चम्पावती, चम्पापुरी, चंपामालिनी, चंपानगर भी कहा जाता था.

 

बिशाखा और भगवान बुद्ध.

बता दें कि नाथनगर स्टेशन से पूरब करैला – कबीरपुर सड़क पर घोगघर या पाण्डे पोखर के नाम से जाना जाता है. यहां एक प्राचीन मंदिर भी है. संगीति का मतलब सम्मेलन होता है. परिचर्चा या धर्म चर्चा भी. काल था हर्यंक वंश के बिम्बिसार का. बिम्बिसार को स्वयं भगवान ने दीक्षा दी थी. चंपा, राजगीर, साकेत, कौशांबी, काशी एवं कुशीनगर नगरों में गौतम बुद्ध स्वयं पधारे थे. बौद्ध गंथों में चंपा को राजगीर, श्रावस्ती, साकेत, कौशांबी, एवं काशी समकक्ष नगर बताया गया है. बिहार राष्ट्र भाषा परिषद, पटना से 1960 में हवलदार त्रिपाठी सह्रदय की प्रकाशित पुस्तक ” बौद्ध धर्म और बिहार  ” में विस्तार से बताया है.   लेखक ने बुद्ध चर्या एवं दीघ निकाय के हवाले से बताया है कि भगवान भिक्षुओं के साथ चंपा फूलों से लदे सरोवर पर ठहरे. उस समय चंपामालिनी का स्वामी सोणदण्ड नामक एक ब्राह्मण था. उसे वह राज्य बिम्बिसार ने ब्रह्म देयस्वरुप दान में दिया था. सोणदण्ड , सरोवर पर बहुत से ब्राह्मणों के साथ मिला. उस समय साथ में मंत्र ज्ञाता, वेद ज्ञाता एवं शास्त्र निपुण भानजा अंगक भी था.

चंपा (भागलपुर) के गर्गरा पुष्करिणी तालाब की सुधि लेने वाले कोई नहीं है आज!

 

गर्गरा पुष्करिणी पर ही बुद्ध की उपस्थिति में ही सारिपुत्र ने भिक्षुओं को दसुत्तर सुत्त का उपदेश दिया था (94 – 95  ) किताब के पेज 68 पर बताया गया है कि धर्म सेनापति सारिपुत्र बौद्ध धर्म दर्शन, ब्राह्मण दर्शन का ज्ञाता था. अगुत्तर निकाय से ज्ञात होता है कि एक हाथी वान का विद्वान पुत्र पेस्स , उसका परिव्राजक मित्र कन्दरक एवं वज्जि देश का माहित ने भी यहां आकर भगवान से धर्म संलाप किया था. चंपा के इस तालाब पर काशी का काश्यप गोत्र नामक भिक्षु भी अपने कष्ट निवारण हेतु धार्मिक सलाह भगवान से लिया था. भगवान बुद्ध के चंपा प्रसंग के बारे में महावग पुस्तक में चम्पेय खंधक नामक प्रकरण ही है. जिसमें दण्ड कर्म, प्रतिसारणीय कर्म, वर्जनीय कर्म, संघ की महत्ता आदि का विस्तृत वर्णन है . ( पेज 96 – 97 )     भगवान अंग से अश्वपुर गांव गए.  यह गांव  (विक्रमशिला के आसपास क्या?)   कौन सा है शोध का विषय है. वहां से भगवान कंजंगल, वर्त्तमान संतालपरगना गए. चंपा की रमणीयता एवं शुद्धता से प्रभावित भगवान के शिष्य आनंद ने बुद्ध से चंपा या राजगीर में ही निर्वाण करने की बात कही थी. इस तरह प्रमाणित हो रहा है कि चंपा के गर्गरा पुष्करिणी सरोवर तट पर भगवान बुद्ध के सामने ही बौद्ध संगीति हुई थी. अंग जनपद गौरवान्वित है.


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