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रमण सिन्हा के साथ ब्यूरो रिपोर्ट/
अंग क्षेत्र के भागलपुर के चप्पा चप्पा में इतिहास किस तरह छिपी हुई है यह शयद अच्छो अच्छो को भी पता करने में दिक्कत हो. पर क्षेत्र के जानेमाने इतिहासकार सहित न्यूज़5पीऍम के एडिटोरियल बोर्ड के सम्मानित सदस्य, रमण सिन्हा इसी तरह निकल पढ़े थे उक्त टीम के साथ और लिख डाले उनकी अपनी अनुभव. हमने उन्ही के कलम से लिखी गयी बातो को आप तक पहुचाने का कोशिश कर रहे है : –
अंग जनपद का भाद्दिया गाँव, वर्तमान अमरपुर प्रखंड का चानन नदी किनारे भादरिया गाँव गौतम बुद्ध काल का महोत्योपूर्ण था. आज भी अंग के लोग गौरवान्वित है कि भगवान् बुद्ध इस गाँव में पधारे थे. सम्प्रति बिहार पुरातत्व निर्दार्शालय के पुराविद अरविंन्द सिन्हा रॉय उनके शोध दल के सदस्य रौशन कुमार, पवन कुमार, मनीष कुमार सहित एस. ऍम. एस. प्लस टू के प्रिंसिपल के. के. सिंह, तिलका मांझी भागलपुर वि. वि. के शिक्षक, बिहारी लाल चौधरी,रजी अहमद सहित तथा इस आलेख के लेखक बुद्ध काल के पुरावशेषो को ढूढ़ने पहुंचे. हवलदार त्रिपाठी ने अपने पुस्तक में बताया है कि लगभग 1200 भिक्षुओ के साथ भगवान बुद्ध भाद्दिया गाँव पहुंचे थे. वह काल ह्य्स्क बंश का शासक बिम्बिसार था. श्रेष्टि उर्फ़ व्यापारी था. उन्होंने अपनी पोती, “ विशाखा” को भगवान की सेवा में लगाया. बाद में विशाखा की शादी श्रावस्ती- वर्त्तमान दिल्ली मेरठ के बीच का क्षेत्र – के नगर सेठ मिगार के पुत्र पुण्यवर्ध्यन से हुई. जैन धर्माबलंवी ससुर मिगार को अपनी सेवा, सुशिलता, तर्को से बौद्ध बनाने में सफलता पाई. तभी से अंग पुत्री को “मिगार माता विशाखा” के नाम से सम्मान देते हैं. अंग पुत्री विशाखा को खुद भगवान ने नारी कर्तव्यों की शिक्षा दी थी. काल क्रम , बाढ आदि के कारण कुछ पुरावशेष नहीं मिला. लेकिन ग्रामीण प्रदीप भगत ने बताया कि हमलोग जानते हैं, तभी तो लखन लाल पाठक ने बुद्ध की स्मृति में बोधिवृक्ष लगाया है. भदरिया गांव में आज भी बडे बडे व्यपारियों के घर है. यहां शोध का विषय है कि क्या गौतम बुद्ध अपने मन से यहां आये थे या बुलाने पर आये थे. या पिछडों, दलितों को बौद्ध धर्म में शामिल करवाने आये थे क्योंकि उस गांव में आज भी किसी सवर्णों का घर नहीं है. गौतम बुद्ध का धर्म ही तत्कालीन सामाजिक विसंगतियों के खिलाफ उपजा एक सम्प्रदाय या यों कहें धर्म था.
भागलपुर का जमींन धन्य है जहाँ भगवान बुद्ध का चरण स्पर्श हुआ था और शयद पाल बंश के पराक्रमी शासक, राजा धर्मपाल अपने भगवान के प्रति भेट स्वरूप विक्रमशिला बुद्ध महाविहार का स्थापना कर डाला था. और संयोग देखिये यही विक्रमशिला कालक्रम में बुद्ध धर्म को पूरी दुनिया के सामने एक नयी पहचान देने के साथसाथ इसको आज दुनिया में जीवित रखने का बीजमंत्र को भी खोंज निकला था.
सरकार को इस दिशा में सही कदम उठाकर, रिसर्च कार्यो, उत्खनन और अन्यो कार्यो को जल्द से जल्द निष्पादित करने की आव्याश्क्ता है ताकि यहा छिपी सुनहरा अतीत का दुनिया के सामने फिर से उजागर किया जा सके.
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