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प्राचीन नक़्शे में चंपा .
रमन सिन्हा/
बिहार के नक़्शे में भले ही आज भागलपुर ( पुराने चंपा ) का कोई हैसियत नही दीखता है पर आप इसके अतीत के विरासत के बारे जानने के बाद चौक जाएगे. मगध (पाटलिपुत्र के इलाका ) शुरू से राजनैतिक कारणों से देश के नक़्शे में एक अग्रणी जगह बना रहा है पर वही अंग क्षेत्र कला, सभ्यता, संस्कृति, व्यापार से काफी आगे था. पर दुर्भाग्य यह रहा की मगध जैसा राजनैतिक संरक्षण नही रहेने के कारण अंग प्रदेश धीरे धीरे अपनी चमक खो दिया.
वैदिक काल में आर्यों के राजनीतिक जीवन का आधार जन था. वे कबीलों में विभक्त थे. यायावरी करते थे. कालान्तर स्थायी राज्य स्थापित हुए जो जनपद कहलाए. गौतम बुद्ध (जन्म ई.पू.563 – निर्वाण ई.पू.543 ) के समय तक ये जनपद पूर्ण विकसित हो गये थे जिसे महाजनपद भी कहा जाता था. बौद्ध साहित्य में सोलह जनपदों का विवरण है, आईए जानिए कहाँ कहाँ था यह जनपदों –
अंग – यह मगध से पूरब था और इसकी राजधानी चंपा थी जो आधुनिक भागलपुर के समीप नाथनगर में चंपानगर आज भी है. यह नगरी कला, सभ्यता, संस्कृति, व्यापार से वैभवपूर्ण था. मगध से हमेशा संघर्ष होता था. अंत में मगध से अंग पराजित हुआ.
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चंपा की पुराणी बिरासत -बिसहरी पूजा जो आज भी होते आ रहा है .
मगध – यह वर्त्तमान पटना एवं गया जिलों फैला था एवं राजधानी राजगीर थी जो चंपा की तरह महत्वपूर्ण था. वहां वृहद्रथ वंश के बाद हर्यंक वंश के शासक बिम्बिसार, अजातशत्रु , उदायिन ने शासन किया. इसके बाद शिशुनाग वंश, नंद वंशजों का शासन रहा. नंदों के नेतृत्व में ही मगध अपने उत्कर्ष पर पहुंचा. हर्यंक वंश के कालाशोक के पुत्र उदायिन ने पाटलिपुत्र को राजधानी बनाया. लेकिन मगध का वास्तविक उत्कर्ष मौर्य काल (ई.पू. 323 – ई.पू. 185 ) में हुआ.
अन्य जनपद – काशी, कोशल, चेदि, वत्स, कुरु,पंचाल, मत्स्य, सूरसेन, अस्मक, अवंति, गांधार, कम्बोज, सहित दो गणतंत्र वज्जि एवं मल्ल थे.
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अतीत की एक झलक चंपा की .
हर्यंक वंश के अजातशत्रु को गौतम बुद्ध के भस्म का एक भाग मिला था जिसके ऊपर उन्होंने राजगीर में एक स्तूप बनवाया. अजातशत्रु के समय ही बुद्ध एवं महावीर को निर्वाण प्राप्त हुआ था. भगवान बुद्ध के निर्वाण के कुछ दिनों बाद ही अजातशत्रु ने बुद्ध के वचनों को संग्रह करने हेतु बौद्ध धर्म की प्रथम संगीति का आयोजन राजगीर में करवाया था.
बुद्ध के निर्वाण के लगभग एक सौ वर्ष बाद शिशुनाग वंश के कालाशोक ऊर्फ काकवर्ण ने वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति करवाया. वह समय उसके शासन का दसवां वर्ष था. ई. पू. 255 में मौर्य सम्राट अशोक ने तीसरी बौद्ध संगीति पाटलिपुत्र में करवाई तो चौथी कनिष्क ने कश्मीर में करवाई.
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चंपा नदी आज प्राय मर चुकी है जैसा की क्षेत्र की हालत है आज.
इन बातों से स्पष्ट है कि चंपा का विकास पाटलिपुत्र से कई सदी पहले ही हो गया था. भगवान बुद्ध के चरण अंग महाजनपद मात्र पडा ही नहीं वरन स्वयं उनके सामने चंपा के गर्गरा पुष्करिणी सरोवर पर संगीति भी हुई थी. पाल वंश के राजा धर्मपाल आखिर भागलपुर के अंतीचक को क्यू चुना था विक्रमशिला के निर्माण के लिए –इस लिए की गौतम बुद्ध का चरण उस धरती पर पडा था. प्रश्न यह है कि जहां जहां बुद्ध के चरण पड़े उस क्षेत्र को बौद्ध सरकिट से जोडा जाना चाहिए. लेकिन अंग सहित अति प्राचीन चंपा के प्रति राजनीतिक सह प्रशासनिक उदासीनता का खामियाजा भुगत रहा है. राजनीतिक सह सरकारी उपेक्षा की बानगी यह है कि 2012 ई. में बिहार दिवस हेतु बिहार गीत तय हुआ लेकिन अंग, चंपा सहित विक्रमशिला को उपेक्षित ही रखा गया. आज तक राजनीतिक उपेक्षा ही झेल रहा है.
हद तो तव हो गया जब केंद्र द्वारा संपोषित सेंट्रल यूनिवर्सिटी जिसका अनुमोदन 2015 में हो चूका है, आज तक जमीन उपलब्ध नही होने के कारण कुछ नही पाया. राज्य सरकार को जमीन उपलब्ध करवाना है.
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भारत के राष्ट्रपति , प्रणव मुख़र्जी विक्रमशिला परिभ्रमण में.
लेकिन ऐसा रहेगा नहीं. बुद्ध स्वयं बुद्धि देगें. अंग सहित भागलपुर विकसित होकर रहेगा. राजनीतिक कारणों से देर हो रहा है पर अंधेरा छंटेगा. आम जन एक जुट हो जाये तो जल्दी होगा, नहीं तो देर आये दुरुस्त होगा की तर्ज पर होगा. मालूम हो की भारत की राष्ट्रपति, प्रणव मुख़र्जी महोदय विक्रमशिला परिदर्शन में गत अप्रैल माह में आये थे और उन्होंने वहां आयोजित एक जनसभा को सोम्बोधित करते हुए विक्रमशिला का अब तक विकाश नहीं होने से खुद खेद प्रकट किये थे. साथ ही साथ उन्होंने विस्वास जताये थे की विक्रमशिला का विकाश को कोई रोक नहीं सकता, विकाश तो होना ही है चाहे समय क्यू नहीं लगे.
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