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निशु जी लोचन/
आज के मिलावटी जमाने में खतरनाक केमिकल से हम कितने महफूज है यह एक यक्ष प्रश्न है. News5PM को एक अध्यन में इस तरह के कुछ चौकनेवाले तथ्य हाथ लगा है.
बिहार जैसे कृषि बहुल इलाके में किसान फ़ूड चैन में जहर का इस्तेमाल खुलेआम कर रहे हैं. भले वह अनजाने में कर रहे हों, लेकिन सवाल है कि बिहार में कृषि रोडमैप का बजट 1 लाख 54 हजार करोड़ का है और कई कृषि विवि, कई कृषि कॉलेज और कृषि विज्ञान केंद्र हैं बावजूद इसके खतरनाक केमिकल का इस्तेमाल पर पाबंदी क्यों नहीं?

फलो के राजा भी अब मिलावट के घेर में !
दरअसल मामला बागान और उद्यान से जुड़ा है. लीची उत्पादन इलाका हो या फिर आम उत्पादन इलाका. News5Pm की टीम को पता चला की इस वक्त ऑफ सीजन में पेड़ को ताकत देने के लिए अनुसंशित मात्रा से ज्यादा रासायनिक घोल का इस्तेमाल हो रहा है. आम या लीची बागान के मालिक के बजाय जिन्हें सट्टा पर बागान बेचते हैं, वे लोग उस खतरनाक रसायन का इस्तेमाल कर रहे हैं. उद्देश केवल अच्छी उत्पादन की ही है, इन रासायनिक घोल में अच्छी पैदावार की गारंटी सौ फिसिदी रहती है.
कृषि वैज्ञानिक इसे बेहद गंभीर मसला बता रहे हैं. आपको सिर्फ याद दिलाएं की मुजफ्फरपुर इलाके में उसी लीची के बागान वाले इलाके में जैपनीज इंसेफलाइटिस की वजह से सैकड़ों बच्चों की मौत हो चुकी है. News 5 Pm आपको अभी ही अलर्ट कर रही है, क्योंकि आपको आम और लीची पसंद है…जानलेवा जहर नहीं!

लीची की मिठास में भी जहर की अंश .
बिहार कृषि विवि उद्यान विभाग के सीनियर कृषि वैज्ञानिक डॉ फ़िजा अहमद बताते हैं कि किसी भी फ़ूड क्रॉप या फल में मात्रा से ज्यादा रसायन का इस्तेमाल करने से उसका असर फ़ूड चेन में हो जाता है. नतीजा कई गंभीर बीमारी अनजाने में इंसान को मौत की तरफ ले जाती है. बिहार सरकार की कृषि विभाग के एक उच्चपदस्थ ऑफिसर नाम न छपने के शर्त पर कहा की सरकार के तरफ से अभी तक उन्हें इस पर कोई निर्देश प्राप्त नही हुई है.
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