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ब्यूरो रिपोर्ट/
29 नवम्बर 1935 को पटना से प्रकाशित एक प्रमुख अखबार दि इंडियन नेशन ने एक खबर छापी थी कि भागलपुर के दीप नारायण सिंह के निधन से बिहार ठहर सा गया था. कलकत्ता के नामी डॉक्टर और स्वतंत्रता सेनानी डॉ विधान चन्द्र राय जो उनका इलाज कर रहे थे तबतक दीप बाबू की चिता के पास ग़मगीन खड़े थे जबतक कि उनकी चिता कि आग ठंढी न हो गयी.
बिहार में आज की पीढी भागलपुर के दीप नारायण सिंह (1875-1935) को बहुत कम जानती है, जिनके परिवार और दीप बाबू ने टी एन जे (अब टी एन बी) कॉलेज, लीला –दीप ट्रस्ट संस्थान, रामानंदी देवी अनाथालय और लाजपत पार्क जैसे चीज दिया. दीप नारायण सिंह ने जीवन के अंत में अपने पास कुछ भी नहीं रखा, सबकुछ जनता को समर्पित कर दिया.
डॉ ब्रजेश वर्मा, जो हिंदुस्तान टाइम्स (रांची) के सीनियर रिपोर्टर और नवभारत टाइम्स के उप-संपादक (पटना) में काम कर चुके हैं, की मद्रास के notion press.com ने “प्रथम बिहारी: दीप नारायण सिंह-1875-1935” शीर्षक से एक किताब हाल ही में प्रकाशित की है. दीप बाबू पर लिखी गयी यह पहली किताब है.
दीप नारायण सिंह का जन्म 26 जनवरी 1875 को भागलपुर जिले के एक जायसवाल परिवार में हुआ था जिनके पिता तेज नारायण सिंह जिन्होंने 19वीं सदी में बिहार के शिक्षा जगत को आधुनिक बनाया, ने अपने पुत्र को राजनितिक और आधुनिक ज्ञान से परिचय कराया था.
बिहार के निर्माता सच्चिदानंद सिन्हा लिखते हैं कि दीप नारायण से उनकी मुलाकात पहली बार 1888 के चौथे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशन के दौरान हुई और फिर वे जीवन के अंत तक एक भाइयों की तरह रहे. सन 1891 में दीप नारायण सिंह ने इंग्लैंड में वकालत की शिक्षा हासिल की और 1896 में अपने पिता की इंग्लैंड में अचानक से हुई मृत्यु के बाद दीप 1897 में अपनी शिक्षा पूरी कर भारत लौट आये. लेकिन उन्होंने कभी भी एक दिन के लिए भी किसी अदालत में वकालत का काम नहीं किया.
किताब के लेखक डॉ ब्रजेश वर्मा ने इस पुस्तक में विभिन्न मूल श्रोतों के आधार पर यह स्थापित किया है कि बिहार के दीप नारायण सिंह वह प्रथम बिहारी थे जिन्होंने उस ज़माने में 15 वर्षों तक दुनिया की सैर की जिसमे अमेरिका और यूरोप के अलावा जापान और रूस भी था.
इसका नतीजा यह निकला कि 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी के आरम्भ में भारत में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं था जिनका अंतर्राष्ट्रीय ज्ञान दीप नारायण सिंह से अधिक था. वे भारत के सबसे आधुनिक फैशनेबल व्यक्ति थे जिनकी तुलना सिर्फ मोतीलाल नेहरू से की जा सकती थी. उनकी दूसरी पत्नी लीला सिंह, जो बंगाल के सर तारक नाथ पालित की पुत्री थीं और जिनका जन्म फ्रांस में हुआ था ने बिहार की महिलाओं की तरफ से इंडियन वीमेन लीग में मतदान के अधिकार की बात उठाई थी.
लेकिन जब 1920 में दीप नारायण सिंह की पहली मुलाकात महात्मा गांधी से हुई तो वे पक्के गांधीवादी हो गए और पूरे भागलपुर में बैलगाडी पर सवार हो तिलक स्वराज फंड के लिए अकेले ही एक लाख रुपया जमा किया.
इससे पहले 1908 के मद्रास कांग्रेस में दीप नारायण सिंह ने देश में चल रहे स्वदेसी आन्दोलन पर जबरदस्त भाषण दिया और गोपाल कृष्ण गोखले के साथ लाहौर के अधिवेशन में गांधी के दक्षिण अफ्रिका में चल रहे आन्दोलन को समर्थन दिया. 1909 में दीप बाबू ने गोखले को बिहार कांग्रेस के अधिवेशन में भागलपुर लाया और महात्मा गांधी जब भी भागलपुर आये दीप बाबू के घर ही ठहरते थे. 1930 में दीप नारायण सिंह बिहार प्रदेश के कांग्रेस के अध्यक्ष बने और अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर हजारीबाग़ जेल में डाल दिया. वह पहले “बिहार केसरी” थे जिसका खिताब जनता ने उन्हें दिया था. बाद में यह खिताब बाबू श्रीकृष्ण सिंह को मिला.
दीप बाबू का सबसे सुनाहरा योगदान शिक्षा को लेकर है. उनके पिता द्वारा स्थापित टी एन जी (अब टी एन बी) कॉलेज आज भी भागलपुर में खडा है. आधुनिक शिक्षा के लिए दीप नारायण ने लीला –दीप ट्रस्ट संस्थान और गरीबों के लिए अपनी पहली पत्नी रमानंदी देवी के नाम पर नाथनगर में एक अनाथालय और लड़कियों के लिए स्कूल भी खोला था. उन्होंने अपने जीवनकाल में अपना सबकुछ जनता के लिए दान कर दिया.
डॉ ब्रजेश वर्मा द्वारा लिखी गयी यह किताब दीप बाबू की एक मात्र पुत्री प्रभावती, आजाद हिन्द फौज के लेफ्टिनेंट आनंद मोहन सहाय, भागलपुर के जाने माने व्यक्ति मुक्तेश्वर प्रसाद और दीप बाबू के उस ज़माने के कई लोगों के मूल साक्षात्कार पर आधारित है. साथ में ब्रिटिश सरकार के उन गुप्त रिपोर्ट्स का भी उल्लेख किया गया है जिसमें अंग्रेज लोग दीप नारायण सिंह को जगलुल पाशा ऑफ़ इंडिया कहकर बुलाते थे. जगलुल पाशा इजिप्ट के प्रधानमंत्री थे और दीप नारायण सिंह के समय में ही हुए थे.
यह किताब (प्रथम बिहारी: दीप नारायाण सिंह 1875-1935) notion press.com, के अलावा अमेजोन, फ्लिफ्कार्ट और गूगल पर भी उपलब्ध है. भारत में इसकी कीमत 155 रुपया और विदेशों में लगभग 10 डालर है.
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