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कांवर यात्रा - कंवारिया चला बाबा की दरवार.


कांवर यात्रा में होता है ईको, मेडिको एवम रिलिजियस टूरिज्म का एहसास

@news5pm

July 12th, 2017

निशु जी लोचन/

 

अगर आप शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक मस्ती चाहते हैं तो उस बाबत आपको ईको, मेडिको एवम रिलिजियस टूर पर जाना चाहिए.  और वह टूरिस्ट इलाका बिहार एवम झारखंड में है. एक तरफ गंगाधाम है तो दूसरी तरफ बाबाधाम है. जब आप गंगाधाम जाएंगे तो वहां की जाह्नवी गंगा आपको पवित्र कर देगी. और जब वहां से 100 किलोमीटर तक नंगे पांव पहाड़, जंगल और बरसाती नदियों को पैदल पार करते हुए बाबाधाम पहुंचेंगे तब, जो मस्ती का एहसास होगा वह साल दर साल आपको ज्यादा ऊर्जावान बना देगी. हम बात कर रहे हैं ईको, मेडिको एवम रिलिजियस टूरिज्म की. धर्म, आस्था, भक्ति और मस्ती अपनी जगह है लेकिन उस शावन में जो कारोबार होता है वह करोड़ो में होता है. एक अनुमान के मुताबिक गंगाधाम से बाबाधाम की पदयात्रा में तकरीबन ढाई से तीन महीने तक चलने वाला मेला, 2500 करोड़ का कारोबार धार्मिक पर्यटन के नाम पर करती है. और उसमें आपको सेहत लाभ के साथ मानसिक शांति भी मिलती है.

सुल्तानगंज की गंगा किनारा जहाँ से शुरू होता है कांवर यात्रा.

 

स्वर्ग से धरती पर जीवनदान देने उतरी गंगा सच मे आज भी करोड़ों लोगों के जीवन का आधार है. सुल्तानगंज में गंगा का जाह्नवी रूप दो पहाड़ों के बीच आज भी मौजूद है. यहां गंगा का पुनर्जन्म हुआ है. अजगैबीनाथ पहाड़ और मुरली पहाड़ को स्पर्श करती गंगा आज भी गंगा सागर की तरफ बहती है. गंगा के पुनर्जन्म और जीवन को उद्धार करने की कहानी से आस्था यहां उमड़ती दिखती है. शायद यही वजह है कि साल दर साल शावन में लाखों की संख्या में शिवभक्त नेपाल ,नार्थ ईस्ट, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, यूपी, गुजरात , झारखंड, दिल्ली और हरियाणा से सुल्तानगंज आते हैं.  प्रशासनिक नजरिये से भले मेला एक माह तक का होता है लेकिन तीर्थ पुरोहित समाज के चुन्नू मुन्नू उर्फ लालमोहरिया पंडा शावन के इस मेले को तीन माह तक सेवा देते हैं. उनके मुताबिक गंगा धाम से बाबाधाम तक कि तीर्थ यात्रा में 85 लाख तीर्थ यात्री आते हैं. और अगर एक शिवभक्त औसतन 5000 रुपये खर्च करते हैं तो बिहार और झारखण्ड सरकार के लिए शावन करोड़ों दे जाता है.

अब सवाल है कि आखिर क्यों साल दर साल शिवभक्त का 100 किलोमीटर तक आस्था भरा पदयात्रा प्रिय होता जा रहा है.  तो तीर्थ पुरोहित कहते हैं कि जीवनदायिनी गंगा में स्नान, फिर गेरुआ वस्त्र धारण के साथ सिर्फ बोलबम का जयकारा. और उस जयकारे के साथ बाबाधाम की ओर पैदल प्रस्थान. रास्ते में सात्विक भोजन और प्राकृतिक आवोहवा के बीच वह सात दिन ईको मेडिको टूर करा देता है. और बांकी जो मिलता है वह सब प्रभु का है.

धर्म और आस्था तो सनातन काल से है लेकिन धार्मिक पर्यटन के लिहाज से अगर यह सावन इस बार भी 2500 करोड़ या उससे ज्यादा दे जाता है तो उस मुताबिक जो तैयारी झारखंड सरकार ने कर रखी है उसकी तुलना में बिहार सरकार को भी करना चाहिये था.


1 Comment

  1. Rajeev Banerjee says:

    वाह, सुन्दर आलेख। बिहार सरकार की आंख खुल जाए तो बेहतर है।

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