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शिव शंकर सिंह पारिजात/
अक्टूबर,17 माह का प्रथम पखवारा बिहार के पुराविदों एवं इतिहास प्रेमियों के लिये बड़ा ही सुखद रहा। लखीसराय के पुरातात्त्विक स्थलों की खुदाई एवं प्राप्त सामग्रियों के दस्तावेजीकरण हेतु बिहार के कला-संस्कृति विभाग की इकाई ‘बिहार स्टेट हेरिटेज डेवलपमेंट सोसायटी’ (बीएसएचएस) तथा विश्व भारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन के बीच एक समझौता-पत्र पर हस्ताक्षर हस्ताक्षर किया गया। इस समझौते पत्र पर बीएसएचएस के कार्यकारी निदेशक विजय कुमार चौधरी और विश्व भारती के रजिस्ट्रार प्रो. अमित हाजरा के बीच शांतिनिकेतन में हुआ। इस अवसर पर विश्व भारती विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक एवं पुराविद् डा. अनिल, जिनकी अगुआई में यह उत्खनन होनी है, ने बताया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) ने प्रथमतः लखीसराय के जयनगर पहाड़ी के लिये लाईसेंस प्रदान कर दिया है और नवम्बर,17 से खुदाई शुरू कर दी जायेगी। गंगा, किऊल व हरोहर नदियों के संगम पर बसा लखीसराय पूर्व मध्यकाल (550-1200 ई.) से लेकर पाल-काल तक (8वीं से 12वीं शताब्दी) तक धार्मिक और राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा, जो कालांतर में उग्रवाद की चपेट में आ गया।
भागलपुर-सह-मुंगेर जोन के डीआईजी, जो स्वयं इतिहास के एक अच्छे जानकार हैं, ने इस उत्खनन का स्वागत करते हुए कहा है कि लोगों को अपने गौरवशाली अतीत से अवगत होना चाहिये। इस खुदाई से पाल-वंश के साथ गौतम बुद्ध से जुड़ी बातों पर और अधिक प्रकाश पड़ने की संभावना है, क्योंकि लखीसराय जिला बौद्ध अनुयायियों के लिये एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। बिहार के पुरातत्त्व विभाग के निदेशक अतुल कुमार वर्मा ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा लखीसराय के 17 पुरातात्त्विक स्थलों के सर्वेक्षण कराये गये हैं जिनमें से 7 को संरक्षित घोषित किया गया है।
लखीसराय में उत्खनन शुरू होने का राज्य के सभी बुद्धिजीवियों ने स्वागत किया है। किंतु प्रचीन काल में अंगभूमि के नाम से प्रसिद्ध रहे भागलपुर के निवासी एक प्रश्न के कारण चिंतित हो उठते हैं। आखिर कब बहुरेंगे यहां के पुरातात्त्विक धरोहरों के दिन ?! कब मिलेगी पहचान सदियों से ज़मीन के नीचे दफ़्न यहां की पुरा सम्पदाओं को। ऐसे संशय के पैदा लेने के पीछे किसी के प्रति शिकायत का भाव नहीं है – बस बार-बार कोरे आश्वसनों से ठगे गये आम लोगों के मानस की पीड़ा है।
बिहार सरकार के पुरातत्व विभाग ने लखीसराय का पुरातात्त्विक सर्वेक्षण फरवरी,17 में कराया और नौ महीने की अवधि में न सिर्फ यहां के 7 पुरा स्थलों को राज्य सरकार ने संरक्षित घोषित कर दिया, बल्कि अब वहां खुदाई का काम भी प्रारंभ होने जा रहा है, जबकि राज्य सरकार के पुरातत्त्व विभाग ने फरवरी,17 से भी पहले पुराविद् अरविंद सिन्हा रॉय के नेतृत्व में गठित 5-सदस्यीय दल जिसमें त्रिपुरा केन्द्रीय विश्वविद्यालय के भूगर्भशास्त्री शुभजीत सेन सहित तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के तीन स्नातकोत्तर के छात्र शामिल थे, ने भागलपुर में पुरातात्त्विक सर्वेक्षण का कार्य शुरू कर दी थी जिसकी रिपोर्ट विभाग विभाग द्वारा एएसआई को भेजी जा चुकी है। इस दौरान सर्वेक्षण टीम ने निर्धारित अवधि में 14,290 किमी की यात्रा कर जिले के सभी 966 चिरागी गांवों का भ्रमण किया तथा ऐसे 203 स्थानों की पहचान की जहां पुरातात्विक अवशेष विद्यमान थे।
सर्वेक्षण के दौरान टीम को 7000 के करीब सामग्रियां मिली जो प्रस्तर, कांस्य, तांबा, टेराकोटा और मृद्भाण्ड के रूप में है। शिलालेखों, मूर्ति शिल्पों, रिलीफ आदि के अतिरिक्त पुराकालीन औजार और करीब 50 टिल्हे भी मिले हैं जिनके सम्यक अध्ययन के पश्चात् अंग के इतिहास के निसंदेह कई अजाने पहलू उद्भाषित होंगे। अंगभूमि के इतिहास व पुराविद्, बुद्धिजीवी तथा आम नागरिक इतने बड़े पैमाने पर सर्वेक्षण कराने हेतु राज्य के पुरातत्त्व विभाग और विशेष रूप से इसके निदेशक अतुल कुमार वर्मा के आभारी हैं। किंतु विभाग द्वारा एएसआई को रिपोर्ट भेज दिये जाने के बावजूद अभी तक इसके महत्वपूर्ण स्थलों को संरक्षित करने की स्वीकृति और खुदाई हेतु लाईसेंस न मिल पाना यहां के लोगों की चिंता का सबब बनता जा रहा है। क्योंकि वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा विक्रमशिला के नाम पर केन्द्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना, पूर्ववर्ती सरकार द्वारा संसद में विक्रमशिला को बुद्धिस्ट सर्किट में शामिल करने की घोषणा और राज्य सरकार की अनगिनत पर्यटन विकास संबंधी घोषनाओं के बावजूद इनके धरातल पर न आने के कारण यहां लोग अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं। कहीं इस बार भी…….!
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