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निशु जी लोचन/
उत्तरप्रदेश, और बिहार में नदीयों के आवाह क्षेत्र में गंगा सबसे बडी नदी प्रणाली बनाती है जिसके द्वारा इन दोनों राज्यों और झारखंड की नदीयों के आवाह क्षेत्र का जल समुद्र तक पहुँचता है, गंगा का यूपी में 2,94,364 वर्ग कि०मी०और बिहार का 1,43,961 वर्ग कि० मी० का आवाह क्षेत्र या फ्लडप्लेन न केवल विश्व के बडे ऐसे क्षेत्रों में आता है यह विश्व की प्रतिवर्ग कि०मी० सबसे ज्यादा आबादी के घनत्व वाला भी क्षेत्र है और मानवजनित गतिविधियों का सबसे बडा केन्द भी.
बिहार की बाढ की समस्या ज्यादा गंभीर नेपाल से निकल बिहार में प्रवेश करने वाली नदीयों के चलते भी बनती है राज्य के 19 प्रभावित जिलों में से नेपाल से लगे 33 प्रखंड और 273 पंचायत इस विभीषका से सीधे तौर पर प्रभावित होते हैं. नेपाल से निकलने वाली गंडक , बागमती, अधवारा समूह की नदियां, बुढी गंडक,कमला बलान,कोशी और महानंदा आती हैं जिसमें से कोशी,गंडक,और महानंदा सबसे ज्यादा तबाही मचाती हैं और जब इनका ताँडव थोडा थमता है तो गंगा शुरू हो जाती है. नेपाल के क्षेत्र में ढलान अधिक और बिहार के नीचले क्षेत्रों में कम रहने के कारण यहाँ पानी अधिक टिकता है. नेपाल की नदियां गंगा से उलट ऐल्यूवल या जलोढ नहीं हैं इसलिए इनका लोड जो सिल्ट के रूप में रहता है जमीन को बंजर बना देने को काफी होता है.
ऐसे बाढ जलीय और नदीयों के चक्र की नैसर्गिक प्रक्रिया है और हम चाहे न चाहें स्वाभाविक रूप से इसे माँनसून में आना ही है. उद्गम से मैदान की यात्रा में नदीयों कि आकृति में परिवर्तन होता है. यात्रा के दौरान इनके जल में मिलते रहनेवाले घुलनशील और अघुलनशील ठोस या लोड चैनल की गहराई को कम करता है और बाढ का क्षेत्रफल बढने लगता है. विसर्पण के चलते किनारों के कटाव की गति भी तेज हो जाती है. बढती भूमंडलीय गर्मी, मानवजनित गतिविधियाँ,अतिक्रमण, किनारों में वनअच्छादन की कमी,गाद,और गहराई में कमी के चलते प्रवाह में कमी,विसर्पण या मियेन्डरिंग को बढाते हैं जिससे कटाव तेज हो जाता है.
अमूमन कोई डूबी वस्तु या आकृति जो बहाव में बहती है वह नदी के बहाव की उर्जा के छठे भाग का समानुपाती होता है यदि बहाव की गति दुगनी हो जाय तो वह 64 गुणा ज्यादा तेजी से अपने में डूबे वस्तुओं या आकृति को बहाती है इससे बाढ के समय बहाव के वेग के अनुरूप इससे मचने वाली तबाही का सहज अनुमान लगाया जा सकता है, ऐयरी का यह सिंद्धांत सभी नदियों पर लागू होता है.
हमारे यहाँ बाढ सुरक्षा माँनसून में आरंभ होती है जो ऐसा ही है की जब आग लगे तब कुआँ खुदे. लीन पिरीयड जब बहाव का वेग कम होता है बाढ सुरक्षा के कार्य होने चाहिए और बचाव का एक ही लक्ष्य होना चाहिए नदी के अविरल बहाव को उसके मुख्य चैनल में बनाए रखना.
समवर्ती सूची में नदीयाँ रहने के एवं राष्ट्रीय आपदा होने के बाबजूद आपेक्षित राशि एवं समेकित योजना का आभाव ही रहता है. जब काम होना चाहिए नहीं हो पाता है , जो होना चाहिए वो नहीं होता. सबसे मँहगा और जिसमें ज्यादा खर्च और तत्किलिक फायदा हो विकल्प वही होता है. केन्द्र से राज्य सरकार ने 813 करोड की राशि आपदा प्रबंधन के मद में माँगी गई है जिसका अतापता नहीं है ,केवल भागलपुर जिले के किसानों के पिछले वर्ष के फसल हानि का बकाया मुवाअजा 51 करोड से ज्यादा है. और इस बीच बाढ की आहट शुरू हो गयी.
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