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ब्यूरो रिपोर्ट/
तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (टीएमबीयु) के पूर्व कुलपति प्रो. रामआश्रय यादव द्वारा शिक्षको के बारे में दिया गया कमेंट भले ही शिक्षको के बीच तनाव पैदा किया है पर उनका कमेंट कोई मायने में खासकर भागलपुर के बारे में काफी महत्वपूर्ण है.
जानकारों ने प्रो. यादव को सपोर्ट करते हुए कहा है कि ‘शिक्षा में गिरावट आना तथा शिक्षक के शिक्षा के प्रति लगाव नहीं होना और तटस्थ रहना’ समाज के लिए काफी नुकसानदेह है, इससे क्रिएटिव आउटपुट ख़त्म होता है और भागलपुर जैसे ऐतिहासिक जगह को इसका खामियाजा भुगतना पढ़ रहा है.
टीएमबीयु के पूर्व कुलपति जिनका कार्यकाल शायद सबसे ज्यादा चर्चित रहा था, सम्प्रति विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में पधारे थे और नसीहत के तौर पर शिक्षको को तरह तरह के किताबे नही पढने के कारण सार्वजनिक मंच से तंज भी कसे थे. पीजी ग्रामीण अर्थशास्त्र विभाग के स्थापना दिवस के अबसर पर उन्होंने मंच से शिक्षको को फकैती छोड़ कर किताबे पढने का उपदेश दिया था.
शिक्षक उनके विरोध में काफी मुखरित हो गया है पर प्रश्न यह है कि क्या गलत कहा था प्रो. यादव ने ? यह बात तो दीगर है कि आज शिक्षको के पास पढने को फुर्सत नहीं है चाहे कारण कुछ भी हो. “आप अगर भौतिकी की कक्षा में जाते हो तो उस विषय को ही केवल पढाये, दूसरी बातो की चर्चा करने का क्या जरुरत है? “ प्रो. यादव सीधे कहा था.
इलाके के जानकारों ने प्रो.यादव के बातो को ठीक कहा है. “टीएमबीयु आज अकादमिक प्रतिस्पर्धा में कितना खरा उतर सकता है ? क्या है यहाँ का पठन पठान का स्तर?,”….. सवाल लाजमी है. बहुतो ने यह प्रश्न उठाया है कि यहाँ विश्वविद्यालय रहने के वाबदूज पटना विश्वविद्यालय को 80 के दशक में विक्रमशिला का खुदाई का जिम्मेदारी मिला था. चलिए यहाँ तक तो ठीक था पर इससे आगे क्या हुआ? क्या भागलपुर विश्वविद्यालय (आज के टीएमवीयु ) विक्रमशिला या भागलपुर जैसे अति प्राचीन एतिहासिक जगह के लिए कुछ किया है ? विश्वविद्यालय में पीजी का दो दो इतिहास विभाग है जहाँ एक से बढ़कर एक प्राध्यापक रहे, पर हुआ क्या है आज तक?
हाँ, हुआ यह है कि यहाँ के रिसर्च स्कलरो और कुछ प्राध्यापको ने शानदार पेपर बजबाया पर इससे क्षेत्र के लिये हुआ कुछ नहीं. क्या यह विश्वविद्यालय अबतक विक्रमशिला जैसा अंतराष्टीय हेरिटेज के लिए कुछ योगदान किया है?
भागलपुर की इतिहास काफी पुरानी है और यहाँ के सभ्यता मगध से भी ज्यादा इम्पोर्टेन्ट रहा था पर यहाँ एनसिएंट हिस्ट्री के पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट रहने के वाबदुज आज तक इस दिशा में क्या क्या हुआ है? सम्प्रति , बिहार सरकार के पुरातत्ब विभाग इलाके में सर्वे कार्य कर यैसे कुछ स्थानों को चिन्हित किया है जहाँ अतीत के कुछ यैसा खजाना छिपा हुआ है जो देश के लिए चौकानेवाला होगा. विभाग आनेवाले दिनों में उन स्थलों में उत्खनन भी शुरू करवा रही है.
“यहाँ के शिक्षको ने केवल क्लास रूम या अपने घर के ट्यूशन रूम पर ही ज्यादा केन्द्रित रहा, बाकी चीजो से कोंई मतलव रहा ही नही. एक बात से स्थिति की गंभीरता को समझा जा सकता है कि सम्प्रति पीजी एनसिएंट हिस्ट्री के छात्र छात्रा को भागलपुर संग्रहालय को देखने का मौका मिला जब उनसभी को एक सेमिनार में बुलाया गया था. “शिक्षको के उदासीनता के चलते यहाँ पढनेवालो के बीच इतिहास जैसे विषयों में कोई खास रूचि पैदा नही होता है, वे केवल परीक्षा में पास करने के लिए पढ़ते है,” यह आक्षेप कुछ छात्रो द्वारा लगाया गया.
“शिक्षको को कितावो से कोई मतलव नहीं रखना, इसका सबसे बडा कारण है कि इनके रूचि में पढाई को छोड़ कर वाकी अन्य चीजे रहती है. और तो क्या, इस विश्वविद्यालय का नाम स्वतन्त्रता सेनानी तिलका मांझी रखा गया पर आज तक कोई यह पता नही कर सका कि तिलका मांझी कौन था, क्या रहा होगा उसका इतिहांस? विश्वविद्यालय के पास आज तक इस सबध में कोई अभिलेख भी नहीं है!” जानकारो का कहना है.
“विश्वविद्यालय में शिक्षको की घोर कमी, समय पर वेतन नहीं मिलना, समय पर प्रमोशन नहीं मिलना, इनफ्रास्ट्रक्चर की कमी आदि आदि …”, शिक्षको का पुराना दर्द्ध रहा है , पर इन सवालों पर पूछने पर वे चुप्पी साध लेते है.
“प्रो. यादव द्वारा कहा गया बात शत प्रतिशत सही है, शिक्षको आज किताबो से कोई मतलब नहीं रहा इसलिए उनकी क्रिएटिविटी ख़त्म हो रही है,” जानकारो का मानना है.
This sweeping statement about teachers in quite uncalled for. I invite him to come to PG physics Dept. and sit in d lecture hall n then decide. He might have been a good administrator, but also remained notorious for his coarse, uncivilized and off d cuff remarks.