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हमारे ब्यूरो रिपोर्ट के साथ निशु जी लोचन/
इस प्रचंड गर्मी में गंगा में जगह जगह पर हो रहे कटाव को क्या कहा जायेगा? शयद इस प्रश्न का सही उत्तर होगा गंगा के साथ हो रहे नाइंसाफ़ी!
सम्प्रति गंगा कटाव के आगोश में मुंगेर जिले के धरहरा प्रखंड के कुछ पंचायत आ चूका है जहाँ तेज कटाव के चलते जनजीवन अस्त- व्यस्त हो रहा है. कटाव मुख्य रूप से क्षेत्र में आये तेज आधी-तूफान के चलते होना शुरू हुआ है पर गंगा नदी के ऊपर जानकारी रखने वालो के अनुसार चुकी गंगा की गोद गाद से भर चूका है, इसकी उपरी हिस्से के पानी तेज हवा के संपर्क में आकर अपनी किनारे के इलाको में तबाही मचा रही है. बाढ़ के बाद जब नदी के जलस्तर में कमी आने लगती है उस वक्त गंगा में इस तरह का कटाव होता है.

मुंगेर में जरी है गंगा का कटाव
धरहरा प्रखंड के एनएच 80 अवस्थित हेमजापुर, बाहाचौकी व शिवकुंड पंचायत क्षेत्र में बीते दिनों आई आंधी ने काफी तबाही मचाई थी. आंधी में कई गरीबों के घरों का छप्पर उड़ गया. वहीं, दूसरी ओर आंधी के कारण गंगा उपजाऊ जमीन काट रही है. कई बीघा जमीन देखते ही देखते गंगा की गोद में समा चुकी है. इधर, गंगा कटाव के कारण भूस्वामी के चेहरे पर घबराहट साफ झलक रहा है. बुधवार को भी आई तेज आंधी व बारिश में गंगा तट के पास दर्जनों बीघा जमीन जमींदोज हो गई. सर्वाधिक कटाव हेमजापुर, चांदटोला, शिवकुंड आदि तटवर्ती इलाकों के पास हो रही है. स्थानीय किसानों के अनुसार इतनी अधिक तेजी से जमीन का कटाव तो बाढ़ के दिनों में भी नहीं होता था. आंधी के कारण आयी लगातार गंगा की लहरें उपजाउ जमीन को अपने आगोश में ले रही है.

एक नज़ारा गंगा का
यह सच है कि गंगा नदी में लगातार सिल्ट (गाद) जमा होते रहने से बिहार में राजधानी पटना से लेकर भागलपुर एवं कटिहार तक और झारखण्ड में साहिबगंज से राजमहल तक हर साल बाढ़ के समय जल प्रलय होने लगा है . पहले तो बाढ़ आती थी और चली जाती थी लेकिन पिछले वर्ष का अनुभव बता रहा है कि एक महिना तक बाढ़ का पानी इलाके कि आबादी को अपने आगोश में लेकर तबाही मचाती रही . गंगा कहती है कि हमें अविरल बहने दो , लेकिन टिहरी और फरक्का बांध कि बेड़ी ने जो हाल किया वह गंगा कछार कि सभ्यता पर सवाल बनता जा रहा है . मुलायम चट्टान वाली हिमालय पहाड़ का मलवा आज भी कई नदियों के माध्यम से गंगा में प्रवाहित होती है लेकिन अब प्रवाहित नहीं हो पाती है . क्यों , “क्योंकि नदी मिले सागर में ” उसके पहले फरक्का जैसा बांध बनाकर बड़ा अवरोध अब तबाही का बड़ा कारण बनता जा रहा है . बिहार सरकार अब नदी मामले के जानकर के साथ उच्च स्तरीय बैठक कर मंथन किया है आखिर फरक्का बांध तोड़ा जाय या फिर और भी कोई विकल्प है . अब हालात जानिए … भागलपुर में गंगा नदी पर बना विक्रमशिला पूल . 67 पिलर में मात्र 3 पिलर ही बचा जो पानी में है . बांकी के नीचे गाद यानि सिल्ट भर चूका है .

क्या गंगा में पानी से ज्यादा बालू (सिल्ट) के कारण जमा हो गया है ?
एक आंकड़े के मुताविक गंगा सालाना 736 मीट्रिक टन मलवा यानि सिल्ट बहा कर लाती है . उसमे से प्रतिवर्ष लगभग 328 मीट्रिक टन सिल्ट यानि गाद या मलवा फरक्का बांध के 109 फाटक नहीं खुले होने कि वजह से ऊपर कि ओर यानि राजमहल , साहिबगंज , कटिहार , भागलपुर , मुंगेर , बख्तियारपुर , छपरा , पटना और दानापुर इलाके में गंगा धार में जमा होकर तबाही का कारण बनती जा रही है . 2016 के अगस्त से सितम्बर कि बाढ़ से हुई तबाही में 10 लाख कि आबादी प्रभावित हुई थी . 31 जिलों के 177 प्रखंड तबाह हो गए थे. 250 लोग मारे गए थे . 1975 में बने फरक्का बांध का निर्माण कलकत्ता बंदरगाह को सिल्ट से मुक्त रखने के लिए किया गया था लेकिन आज बिहार सरकार के लिए सरदर्द बनता जा रहा है . गंगा मुक्ति आन्दोलन के प्रणेता डॉ अनिल प्रकाश आज भी अपने साथियों के साथ मिल बैठ कर गंगा के मसले पर , फरक्का के मसले पर मंथन कर रहे हैं . गंगा मुक्ति आन्दोलन के लोग 35 साल पहले कह रहे थे कि फरक्का तोड़ो लेकिन अब के हालात को देखते हुए कह रहे हैं कि विकल्प कि तलाश करो . नदी मामले के जानकार डॉ अनिल प्रकाश और डॉ विजय कहते हैं कि सरकार कि निति पर शक नहीं लेकिन नियत पर अभी भी शक है .
“ मुंगेर जैसे घटना हम सब के लिये एक चुनैती के साथ साथ एक चेतावनीः भी है, अभी बरसात का समय दूर है पर कटाव तेज गति पकड़ रहा है. समय रहते हुए हमें कोई कारगर कदम उठाना चाहिए,” बिहार राज्य जल संसाधन बिभाग के एक अधिकारी नाम न छपने के शर्त पर बताते है.
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