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भागलपुर:
स्थानीय लोग इस संदेह के वातावरण में जी रहे है कि बिहार का भागलपुर शहर कभी एक स्मार्ट सिटी का रूप ले पायेगा भी या नहीं.
केंद्र दरकार द्वारा पिछले साल जिस दिन भागलपुर को स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा की गयी थी यहाँ एक जश्न का माहोल था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने भारत के कुछ उन चुनिंदे विकसित और अर्ध-विकसित शहरों को चुस्त-दुरुस्त बनाने की सोची, जिससे कि प्रगति का एक नया रास्ता खुले. बिहार में भागलपुर को चुना गया.
यहाँ के आम नागरिकों की इस शाहर के प्रति जो राय दिखती है उसमें इस प्राचीन नगर को कभी का तरक्की के रस्ते चल पढ़ना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो इसके कुछ राजनीतिक और कुछ ऐसी घटनाओं को कारण के रूप में बताया जाता है जो नहीं होनी चाहिए थी.
दरअसल भागलपुर में एक बेमेल राजनीति का इतिहास रहा है. ऐसा नहीं हो पाया कि जिस दल की सरकार केंद्र में रही हो उसी दल के सांसद भी भागलपुर से हों. खासकर 90 के दशक के बाद तो नहीं, जबकि पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने भारत में व्यापार के दरवाजे खोले थे.
केरल के एक व्यकित जिन्होंने हाल ही में भागलपुर की यात्रा की थी ने इस शहर की दुर्गति के प्रति अपना रोष प्रकट करते हुए कहा कि जिस दिन 1989 में भागलपुर में सांप्रदायिक दंगे हुए उसी दिन से इसके तरक्की के रस्ते बंद हो गए. “भगालपुर के प्रति बाहर के लोगों की सोच बहुत अच्छी नहीं है,” उन्हेंने अपने विचार रखे.
बहुत सारे लोग इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते हों, पर आज भी सारी राजनीति उसे मार्ग पर चली जाती है. इस शहर को जितना आगे बढ़ने की कोशिश की जाती है कुछ लोग इसे उतना ही पीछे ले जाने की भी फिराक में लगे रहेते हैं.
“नगर निगम द्वारा शहर के आजू –बाजू दो-चार कचरे के डब्बे को रख देने भर से कोई नगर स्मार्ट नहीं हो जाता. यह तो नगर निगम का कर्तव्य है. जिला प्रशासन ऐसा कर के यदि सोचता है कि शाहर स्मार्ट हो जाएगा तो ऐसा कभी नहीं होगा,” संदेह के वातावरण में उपजे सवालों को लोग खडा करते हैं.
जानकारों का कहना है कि इसके लिए बस दो ही काम तो करने हैं-एक विस्तृत प्लान बना कर उसे अमल में लाना और दूसरा लोगों की मानसिकता को साफ़ सफाई की और मोड़ देना.
क्या ये दो प्लान संभव हैं? इसका जबाव तो शहर के लोग ही देंगे.
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