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भागलपुर सिल्क की बुनियादी यूनिट .
निशु जी लोचन/
भारत सरकार के वित्त मंत्री भले ही कहे कि टेक्सटाइल इंडस्ट्री पर जीएसटी काम नहीं होगी क्योंकि , आयातित कपड़े सस्ते हो जाएंगे. लेकिन देश के अंदर कई इलाके वैसे हैं जहां कॉटेज या स्माल स्केल इंडस्ट्री में पूरा समुदाय शामिल होता है. नतीजा वहां कारोबार से जुड़ा आर्थिक संकट उभरने लगा है.
भागलपुर का सिल्क इंडस्ट्री इसका एक वडा उदहारण है. जीएसटी लागू होने के बाद 5 प्रतिशत तो व्यापारी को टैक्स के तौर पर ग्राहकों से मिलेगा लेकिन जो सिल्क उत्पादन की लागत है वह 41 प्रतिशत हो जाता है. तो 36 प्रतिशत अतिरिक्त लागत की भरपाई कैसे होगी ?

कल क्या होगा : डर सता रहा है भागलपुर के सिल्क बाजार में.
एक समस्या तो यह है, दूसरी जब उस बढ़ी हुई लागत पर सिल्क कपड़े का उत्पादन होगा तो स्वाभाविक है लागत मूल्य बढ़ने से तैयार माल का दाम भी बढ़ेगा. चुकी भागलपुर में बने सिल्क कपड़ों की मांग बाहर के देशों में ज्यादा है. और उस दशा में सस्ते दर पर अंतरराष्ट्रीय बाजार में चाइना पहले से ही धाक जमाये हुए है. उस दशा में इंडियन सिल्क की बड़ी अच्छी खासियत के बावजूद चीन में बना सिल्क कपड़ा सस्ते दर पर बाजार में छा जाएगा. भागलपुर के सिल्क कारोबारी और आर्थिक मामले के जानकार इसी बात से चिंतित हैं की सामुदायिक उधोग को इस तरह एकाएक टैक्स के दायरे में लाने के पहले एक बार विचार कर सरकार राहत देती तब शायद कुछ आसानी होती. वैसे अब बिहार सरकार के वित्त मंत्री अब्दुल बारी सिद्दकी आगामी 22 जुलाई को सिल्क कारोबारी और व्यापारी के साथ इसी मसले पर विचार करने भागलपुर आ रहे हैं.
प्राणेश राय, सिल्क कारोबारी भागलपुर के अनुसार जल्द्वाजी से किया गया यह निर्णय शायद भागलपुर जैसे जगहों के सिल्क कारोबारियों के लिए फायदेमद न हो. जबकि कुछ आर्थिक मामले की जानकरो के अनुसार चुकी भागलपुर जैसे जगह पर बहुत सारे यूनिट को जोड़ कर सिल्क का काम होता है मशलन कोइ सुता खरीदता है तो कोई रंग खरीदता है. यैसा छोटे छोटे कारोबारियों के हितों का कितना सम्मान किया जायेगा यह आनेवाले समय ही बता पायेगा.
फ़िलहाल, जीएसटी तो अभी ठीक से लागु ही नहीं हुआ है पर इसको लेकर यहाँ हाँयतोबा मचा हुआ है. अब आगे देखना है जीएसटी किस कदर यहाँ के सिल्क बजार का रौनक को बरकरार रख पायेगा!
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