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बिक्रमशिला के खंडहर
शिव शंकर सिंह पारिजात
पूरे विश्व व देश के साथ कोविड-19 के द्वितीय लहर की विभीषिका से जूझ रही भागलपुर की प्राचीन अंगभूमि में आज ‘अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस’ के अवसर पर सदियों से मौन खड़े यहाँ के असंख्य धरोहर जीवन के शाश्वत संदेश देते प्रतीत हो रहे हैं। अपने अहम् एवं निजी स्वार्थों के वशीभूत भले ही हमने कभी इनकी सुधि लेने की ज़हमत नहीं उठाई, पर समय के झंझावातों से जूझते हुए कैसे अपने अस्तित्व को बचाये रखा जा सकता है, इसके ज्वलंत उदाहरण अंग के यत्र-तत्र बिखरे पड़े पुरातात्विक अवशेष हैं जो प्राकृतिक आपदा व मानवीय आक्रमणों से जूझते हुए हमें मानों ये बता रहे हैं कि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने आंतरिक बल से खड़ा रहा जा सकता है।

सुल्तानगंज के रॉक कटिंग
ऐसे तो अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस मनाने की परम्परा वर्ष 1983 के 18 मई से प्रारंभ हुई, जो हमारे पुरातात्विक व सांस्कृतिक विरासतों के साथ प्राकृतिक धरोहरों के संरक्षण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को प्रति वर्ष दुहराते हैं, पर अंगभूमि भागलपुर के विरासत तो सदियों से विद्यमान हैं। किंतु हमने कभी इनके मर्म को समझने की कोशिश न की।
प्राचीन अंगभूमि की राजधानी रही चम्पा आज यह कहती नज़र आती है अगर इसके सीने पर शान से खड़े कर्णगढ़ वज़ूद को बचा लिया जाता तो महाभारतकालीन योद्धा दानवीर कर्ण की इतनी सिफ़त तो हमें जरूर मिल जाती कि ऑक्सीजन सिलिंडर, भेंटीलेटर, रेमडिसवियर जैसी जीवनरक्षक सामग्रियां किसी नरपिशाच के खूनी चंगुल की बजाय किसी सहृदय दाता के हाथों में होता। और ये सब कुछ पीड़ित परिवारों को व्यापारिक लोलुपता की बजाय सहृदयता के साथ उपलब्ध होते।
आज हमारी लोलुपता की भेंट चढ़ चुके स्वास्थ्यवर्धक सुगंध बिखेरने वाले चम्पक वृक्ष, जिनकी बहुतायत के कारण यह भूमि चम्पानगरी कहलायी, अतीत के झरोखे से रो-रोकर कह रही है कि यदि हमें सहेज कर रखते तो कतरा-कतरा ऑक्सीजन के लिये तड़पकर जान देने की नौबत नहीं आती। मेरी मनमोहक सुगंधित हलाएं तुम्हें समृद्धि व आरोग्य से लबरेज़ कर देतीं।

बुद्ध के मूर्ति
चम्पानगरी की प्रसिद्धि एक और कारण से भी रही है जब यहाँ की एक दृढ़प्रतिज्ञ एक नारी ने मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के असंभव कार्य को अंजाम दिया। यहाँ की फ़िजां में सदियों से गूंज रही बिहुला-विषहरी की गाथा आज अंगभूमि के घर-घर में कोरोना की भेंट चढ़े अपने परिजनों के लिये विलाप कर रहे लोगों को सती बिहुला के उस दृढ़ निश्चय की याद दिला रही है जिसने अपने मृत पति के प्राण को वापस प्राप्त किया। पर हम बिहुला के उस त्याग व संकल्प को कभी अपने जीवन में उतारने की कोशिश न की। कभी चम्पा के प्रांगण में कल-कल निनाद कर बहती जीवनदायिनी चन्दन अर्थात चांदन नदी आज मलबों के बोझ तले कराहती हुई अपनी दुर्दशा व अपने भूमिपुत्रों की बदहाली पर आठों आंसू बहा रही है। आज यदि हम चांदन को सुरक्षित-संरक्षित रखने के प्रति सजग रहते, तो ये न सिर्फ हमारे घर-आंगन को कतरनी चावल के विलुप्त हो गयी मोहक सुगंध से भर देती, वरन् हमें प्राणवायु प्रदान कर अमरत्व का वरदान देती होती।
आज गंगातट पर बसे अंगभूमि भागलपुर में शासन-प्रशासन की लापरवाही से कोरोना मृत्यु का तांडव कर रही है और इसकी गोद में तैरते असंख्य शवों की त्रासद सूचना दिल को दहला रही है, पर इसी पावन भूमि पर पौराणिक काल में देव और दानवों ने मिलकर मंदार पर्वत को मथनी बना क्षीरसागर का मंथन कर अमृत-घट हासिल किया था। हम इस अंगभूमि पर हुए अमृत मंथन के अमृत को तो न सहेज सके, पर विष की ज्वाला को अपनाकर अग-जग को दूषित कर दिया जिसके परिणाम झेलने के लिए आज हम शापित हैं।

सुल्तानगंज की चर्चित रॉक कटिंग नरसिंघा मूर्ति .
हमारे पूर्वजों ने पुण्यसलिला गंगा व जीवनदायिनी जल की महत्ता को समझते हुए यहाँ सदियों पूर्व कांवर-यात्रा की परम्परा शुरू की जिसमें सुलतानगंज की उत्तरवाहिनी गंगा का जल कांवरों में उठाकर बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग पर अर्पित करने का विधान है। कहलगांव के बाबा बटेश्वर धाम में कभी वर्षावर्द्धन अनुष्ठान के आयोजन होते थे जब बटेश्वर लिंग पर जल की वर्षा की जाती थी। पर इन अनुष्ठानों के माध्यम से दिये गए अपने पूर्वजों के जल संरक्षण संबंधी संदेशों की गहराई से हम विमुख रहे।
इस भूमि पर स्थित विक्रमशिला बौद्ध महाविहार ने कभी पूरे विश्व में ज्ञान, विद्या, धर्म व सच्चरित्रता के संदेश दिये थे। संस्थान की शुचिता के लिये विक्रमशिला के आचार्य दीपंकर ने लाख विरोध के बावजूद गलत कार्य करने वाले एक साधक को महाविहार से निष्कासित कर दिया था। पर अपने संस्थागत दायित्व व गरिमा को भूल इसी भूमि पर स्थित कुछ चिकित्सा संस्थान न सिर्फ नरपिशाच की तरह खून चूसने पर उतारू हो गए हैं, वरन् वहां औरतों की ईज्जत पर भी कुदृष्टि के उदाहरण मिल रहे हैं। इसी भूमि पर स्थित विक्रमशिला में कभी एक अनैतिक कार्य को बर्दाश्त नहीं किया गया था, पर आज तो इसका ही बोलबाला है और इस अनर्थ के प्रति आज के जिम्मेदार आंख मूंदकर कुंभकर्णी निंद्रा में पड़े हुए हैं।

गुवराडीह में पाए गए अति प्राचीन मिटटी के बर्तन और अन्यो आकृतियों.
इन दुरावस्थाओं के बीच कोरोना काल में आज हम भले संगदिल याने पत्थर के कलेजेवाले हो गये हैं, पर पाषाण खंडों अथवा धातुओं से निर्मित अंग के धरोहर हमारी बदहाली पर आठों आंसू बहाते-से नजर आ रहे हैं। सम्पूर्ण विश्व में शांति, सौंदर्य व शिल्प का संदेश दे रही इंग्लैंड के बर्मिंघम म्यूजियम की शोभा बढ़ा रही सुलतानगंज से मिली बुद्ध की आदमकद मूर्ति अंग के पुत्रों की दुर्दशा देखकर जरूर मौन रूप से आंसू बहा रही होगी।
कभी अंग की भूमि पर भगवान बुद्ध और महावीर जैन ने सुख, शांति और जीवन के संदेश दिये थे। चम्पा की गग्गरा पुष्करिणी व कहलगांव का बुद्धासन झील इसके गवाह है जब बुद्ध के चरण-रज यहाँ पड़े थे। इस भूमि के लोगों की असहनीय पीड़ा व उन्हें मूलभूत सुविधाओं के अभाव में तड़पते देख करया बुद्ध व महाबीर की आत्मा कचोटती नहीं होगी। जहाँ कभी उनके आगमन पर उत्सवपूर्ण समारोह आयोजित किये जाते थे वहाँ आज मरघट-सा सन्नाटा पसरा हुआ है।

सीएम नीतीश कुमार गुवराडी में मिटटी के अन्दर पाए गए अति प्राचीन अवशेषों को अवलोकन करते हुए.
ठीक ही कहा है, अपने अतीत और अपने धरोहर को भूलकर हम कभी सुखी नहीं रह सकते।
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