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रमन सिन्हा
अंग देश (भागलपुर) के चंपा निवासी ” सोणकोटिविंश ” से प्रभावित होकर भगवान बुद्ध ने भिक्षु संघों के लिए एक तल्लेवाला जूता पहनने का विधान लागू किया था।
सोणकोटिविंश बीस करोड़ मुद्राओं का स्वामी था इसलिए उन्हें बीस करोडी भी कहा जाता था। मगध राज बिम्बिसार ने एक बार अपने राज्य के समस्त ग्रामपतियों को राजगीर बुलाया। राजा ने सर्वप्रथम ग्रामपतियों से राज्य व्यवस्था संबंधी बातें की। सभा समाप्त होने पर बिम्बिसार ने सबों से कहा कि यहां आप लोगों ने लौकिक विषयों पर बातें की। अब आप सब भगवान बुद्ध के पास जाकर कुछ पारलौकिक चर्चा भी करें।
अस्सी हजार ग्रामपतियों ने बुद्ध को सुना। सोणकोटिविंश, बुद्ध के उपदेश से इतना प्रभावित हुआ कि उसने भगवान से प्रव्रज्या मांगी। भगवान ने उसे प्रव्रजित कर उपसंपदा भी दे दिया। उपसंपदा लेकर वह राजगीर के पास सीतवन में अन्य भिक्षुओं के साथ रहने लगा। वह जिद्दी लेकिन उघोग परायण था। उसे पैर के तलवे में एक प्रकार की बिमारी थी जिससे वह खाली पैर नहीं चल पाता था। खाली पैर चलने से पैर लहुलुहान होते रहता था।
भगवान बुद्ध जब यह पता चला तो उन्होंने सोणकोटिविंश को समझाया कि उघोग में ही मध्यम मार्ग को अपनाओ। न तो तपस्या में अधिक ढीले होओ, न ही अधिक उघोगी बनो। दोनों में हानि है। अतः मध्यम मार्ग ही श्रेयस्कर है। भगवान ने पुनः कहा कि यघपि संघ के भिक्षुओं के लिए जूता पहनने का विधान नहीं है, तथापि तू जूता पहने हो।
इस पर सोणकोटिविंश ने श्रद्धा पूर्वक कहा कि नहीं महाराज। इतनी बडी संपत्ति छोड़कर जब मैं प्रव्रजित हो गया हूं तब भिक्षु होकर जूता कैसे पहन सकता हूं। हां, यदि सारा संघ जूता पहने तो मैं भी पहन सकता हूं।
भगवान बुद्ध ने उदारता का परिचय देते हुए तत्काल एक तल्लेवाला जूता पहनने का विधान संपूर्ण संघ के लिए लागू कर दिया। इन बातों से साबित होता है कि सोणकोटिविंश के लिए ही भगवान ने संघ के नियम में परिवर्तन कर दिया। उनके शिष्यों में सोणकोटिविंश का स्थान सोलहवां था। उघोग परायणों में वह सर्वश्रेष्ठ था । (संदर्भ – हवलदार त्रिपाठी सह्रदय, बौद्ध धर्म और बिहार, पटना,1960, पेज – 114 – 116 )
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