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भगवान मधुसूदन .


अब भगवान के मुहँ से निवाला छिनने के फेर में है सरकार

@news5pm

January 5th, 2019

ब्यूरो रिपोर्ट/

बिहार सरकार को अब भगवान को भूखे रखने की सूझी है. सदियों से चले आ रहे मंदिर की परम्परा जहाँ भगवान के साथ साथ दीनदुखियो को भी मुप्त प्रसाद के रूप में भोग प्राप्त हो जाता था, अब वो बन्द हो जायेगा.

यह कहानी है बांका जिले के  बौंसी स्थित भगवान मधुसूदन मंदिर की जहाँ दैनिक परम्पराओं के अनुसार उनको सुबह और शाम भोग लगाए जाने के बाद उपस्थित लोगों, साधुओं तथा दीन-हीनों में प्रसाद बांटा जाता है. ऐसी परम्पराओं का निर्वाह करने के लिए राजाओं ने काफी भूमि दिये जिसे अब सरकार ने हड़प लिए. आफत यह है कि अब भगवान के निवाले (राग भोग) के पैसे भी बंद कर दिये गए.

मालूम हो कि सन 1964 में बिहार सरकार के राजस्व विभाग ने भी मेले की आय का 60% देने का अनुरोध किया था तब से 60% भगवान मधुसूदन को दिया जा रहा था जिसे अब बंद कर दिया गया. इससे पहले 17वीं शताब्दी में खड़गपुर के राजा बहरोज़ ने भगवान मधुसूदन और उनके सेवायतों के नाम पर लगभग एक हज़ार बीघे ज़मीनें दीं. राजा बहरोज़ के अधीन तब यह क्षेत्र था. राजा बहरोज़ राजा रोज़ अफ़जुन का बेटा था और राजा रोज़ अफ़जुन खड़गपुर का संस्थापक राजा संग्राम सिंह का सुपुत्र था.

19वीं शताब्दी के 8वें-9वें दशक में लक्ष्मीपुर रियासत के ठाकुर रूपनारायण देव ने भगवान मधुसूदन के मंदिर को विस्तार दिया. इससे पहले यह मंदिर एक छोटे बरामदे वाले कमरे में हुआ करता था. इसी दौरान इन्होंने भगवान मधुसूदन और इनके सेवायतों के नाम बहुत सारी ज़मीनें दीं.

भगवान मधुसूदन के मंदिर के सामने एक विशाल भूखंड हाट और मेला आयोजित करने के लिए ठाकुर मधुसूदन के नाम दिया गया जिसकी आय से उनकी तय परम्पराओं के निर्वहन किया जाना सुनिश्चित किया गया था.

मधुसूदन मंदिर के सामने आज प्रबुद्ध लोगों ने ‘सामूहिक उपवास’ रखा.

फ़िलहाल, आज यह ज़मीन बिहार सरकार के अधीन ‘बौंसी मेला’ आयोजन स्थल के तौर पर जाना जाता है. यह बौंसी मेला अब ‘मंदार महोत्सव’ के नाम से आयोजित किया जाता है. यह मेला इस साल से ‘राजकीय मेला’ हो गया है. इससे एक दशक पहले से ही बिहार सरकार का पर्यटन विभाग प्रतिवर्ष मेले के आयोजन के लिए मोटी रकम देता आया है. इससे पहले मेले के आयोजन का समूचा खर्च मेले की नीलामी से प्राप्त आय से हुआ करता था. अब मेले की नीलामी से मेले के खर्च का कोई लेना-देना नहीं है.

भगवान मधुसूदन के प्रांगण में लगनेवाला यह वार्षिक मेला 14 जनवरी से शुरू होकर तकरीबन एक महीने तक चलता है. भगवान मधुसूदन की तय रीतियों के अनुसार प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के दिन से एक महीने तक खिचड़ी का भोग लगाया जाता है. भोग के उपरांत यह खिचड़ी श्रद्धालुओं तथा दीन-हीनों (दरिद्र नारायण) में बांटा जाता है. इसी तरह भोग का नित्य प्रावधान है.

सन 1964 के पत्र संख्या – ET/SRT-I-C-89/64-6820/IR, दिनांक – 30 जुलाई 1964 के अनुसार बिहार सरकार के राजस्व विभाग के अंडर सेक्रेटरी श्री एस. आर. अहमद ने भागलपुर के कमिश्नर को बौंसी मेले की आय से प्राप्त राशि की 60 फीसदी मधुसूदन मंदिर को देने के लिए लिखा था. इससे पहले भी पत्र संख्या – 5804, दिनांक- 29 सितंबर 1953 में भी इसी बात का उल्लेख है.

बौंसी के पापहारणी तालाब, मंदिर के पास.

सन 2016 में मंदार महोत्सव की मंच से बांका के तात्कालिक विधायक रामनारायण मण्डल ने जिले के सभी उपस्थित विधायकों से यह आह्वान किया कि हम सभी मिलकर सरकार पर दवाब बनाएँगे कि मेले से प्राप्त सम्पूर्ण आय को भगवान मधुसूदन मंदिर को प्रदान किया जाए. “पर अब तो रामनारायण मण्डल स्वयं राजस्व मंत्री हैं लेकिन इन्होंने इस मुद्दे पर कोई तत्परता नहीं दिखाई, बिलकुल उदासीन रहे,” बौंसी के प्रख्यात समाजिक कार्यकर्ता सह मंदार विकास परिषद  के उदय शंकर झा ‘चंचल’ का आरोप है.

अब बौंसी मेले को राजकीय मेले का दर्जा हासिल हो गया है.  सन 2017 में रामनारायण मण्डल  राजस्व मंत्री बने तो लोगों में आस जगी कि अब इस प्रथा का कायाकल्प हो जाएगा मगर हस्र यह हुआ कि 2018 में सम्पूर्ण आय तो छोड़िए, 60 प्रतिशत  भी नहीं; यह घटकर मात्र 10 प्रतिशत  रह गया यानी बौंसी मेले की आय का मात्र 10 प्रतिशत  मधुसूदन भगवान के खाते में खर्च करने के नाम पर दिया गया.

उदय शंकर जैसे प्रबुद्ध लोगो ने आज मंदारधीश भगवान मधुसूदन को बौंसी मेला से प्राप्त आय का 60% सरकार से दिलाने के लिए लोगों ने ‘सामूहिक उपवास’ रखा. इसमें सिर्फ बौंसी के लोग ही नहीं मुंबई, देवघर, भागलपुर, बांका से भी दर्जनों लोग आए.

“ सभी ने सन 1964 की प्राचीन व्यवस्था के अनुसार मंदिर को 60% राशि दिलाने के लिए आज सामूहिक उपवास रखा. यह कार्यक्रम मंदार विकास परिषद के नेतृत्व में धर्मरक्षिणी महासभा (मंदार क्षेत्र), पिछड़ी एवं अत्यंत पिछड़ी जाति उत्थान समिति, मंदार क्षेत्र साधु समाज, सम्पूर्ण पंडा समाज, वालिशानगर नवयुवक सभा, पिछड़ी जाति महिला कल्याण समिति, दलित सेवा समिति, मधुसूदन मंदिर संचालन समिति, मधुसूदन मंदिर निगरानी समिति के सहयोग से सम्पन्न हुआ,” उदय शंकर झा ‘चंचल’ ने कहा.

सरकार के विरोध में उतरे लोग.

इस कार्यक्रम में मंदार विकास परिषद के उदय शंकर झा ‘चंचल’ के अलावे  जयनन्दन यादव, शंभू प्रसाद यादव, मिहिलाल पासवान, रमेश चंद्र झा, अरुण सिंह, टेकनारायण जी, शिवनारायण भगत, विष्णु भगत, अभिषेक प्रियदर्शी, डॉ. रवि रंजन, निरंजन राणा, राजीव ठाकुर, राजेश झा, राजेश कुमार रंजन, राजा राम अग्रवाल, सुबंश ठाकुर, कामदेव कापरी, नीलेश शुक्ल, घनश्याम प्रसाद सिंह, कैलाश मण्डल, मृगेंद्र ठाकुर सहित 150 से अधिक लोग उपस्थित रहे.

मुक्ति नाथ मंडल, सर्किल ऑफिसर , बौंसी जो मधुसूदन मंदिर के सचिव भी है, इस संबध  में बात करने के लिए उपलब्ध नही थे. पर मंत्री रामनारायण मण्डल पत्रकारों को कहा की उन्होंने मंदिर के कागजात मंगाया है और अगर रिकॉर्ड में उक्त बातो का जिक्र मिलेगा तो, सरकार फिर से पुराने व्यवस्था को लागु करेगी.


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