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पवन एंड वर्षा - मंजूषा को उकारा दीये और रोंगोली में.


मंजूषा आर्ट का दीया चाइना के दीये पर भारी

@news5pm

October 15th, 2017

निशु जी लोचन/

चाइना से रिश्ते में खटास आने के वाद भी चाइना प्रोडक्ट मार्किट में आज भी धरल्ले से बिक रहा है. पर भागलपुर में कलाकारो ने भी खोज निकला नया तकरीब- वना डाले मंजूषा दीये और कर दी चाइना का दिवाली बाज़ार फीकी !

दीपावली का दीया और दीया बनाने वाला कुम्हार अब थोड़ा उत्साहित हैं. जब से चाइना निर्मित सामान के बहिष्कार की बात सरेआम हो रही है उससे बाजार में स्वदेशी उत्पाद की रौनक बढ़ती दिखने लगी है. खासकर डिजाइनर दीये ने चाइना के डिजाइनर दीये को भी मात दे दिया है. मंजूषा गुरु के नाम से फेमस पवन पंडित और उनकी धर्मपत्नी वर्षा ने इस दीपावली पर कुछ नया करने को ठाना और कर दिखाया. घर में बने दीये पर मंजूषा आर्ट को उकेर कर आकर्षक बना दिया है. साथ मे रंगोली, बड़ा दीया और कुप्पी पर मंजूषा आर्ट के डिजाइन ने आकर्षक लुक ले लिया है.

मंजूषा से वना रंगोली .

 

“हमको अचानक ख्याल आया की कुछ करे और चाइना को टक्कर दे, कम से कम बाज़ार से इसका सामान तो बंद करवा सकते है. समय दीवाली का है और बाज़ार में चाईनिज लाईट का लोगो के बीच ज्यादा प्रचलन है. सो वना डाली दीये, कुप्पी और रोंगोली जिस पर मंजूषा आर्ट को उकेरा गया. आइटम हिट हो गया यहाँ,” पवन बताते है. उनके अनुसार समय कम था पर उनका सारे दीये का डिमांड काफी बढ़ गया.

पवन का दीवाली आइटम 5 से 25 रूपये के बीच उपलब्ध है, जो आकर्षक और सुन्दर है. “मुझे जब पता चला की मंजूषा आर्ट को उकेरा हुआ दीये आदि बाजार में मिल रहा है, मैने सारे दीये फेक्वा दी,” स्वरूपा, एक गृहिणी वेबाक कहती है.

आकर्षक दीये और रंगोली.

 

पवन पंडित बताते हैं कि अगर पूरे हिंदुस्तान के अलग अलग इलाकों की आर्ट को देशी उत्पाद पर उकेर दिया जाय तो उन कलाकारों के घर का दीपावली भी जगमग हो सकता है साथ ही साथ मंजूषा जैसा आर्ट का भी संरक्षण मिल सकता है. “हम आगे इस प्रोजेक्ट को आगे लेकर जायेंगे, इसमें काफी संभवना है,” पवन उम्मीद रखते है.

सनद हो की मंजूषा इस वार कोलकत्ता के एक दुर्गा पूजा पडाल में धूम मचा चूका है. “मंजूषा आर्ट को एक सही प्लेटफार्म का सक्त जरुरत है. मधुवनी आर्ट को काफी प्रोत्साहन मिल चूका है सो यह काफी आगे निकल गया. जरुरत है मंजूषा को भी उचित प्रोत्साहन का और इस तरह से मंजूषा आगे निकल सकता है,” प्रख्यात रंग कर्मी, शशि शंकर का मानना है.


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