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निशु जी लोचन/ ब्यूरो रिपोर्ट
देश के लिए वलिदान देना एक सैनिक का सवसे बढ़ा धर्म माना जाता है और भारत में इसका हजारो उदहारण है. पर शहादत के वाद अगर शाषण सत्ता के कारण उस शहीद के परिवार को कोई भी कष्ट का निवारण नही होता है तो, बात अनर्थ हो जाती है.
बात कुछ यैसी है शहीद रतन ठाकुर के परिवार के साथ, शहादत का एक साल पूरा हो गया आज, लेकिन आज भी शहीद रतन के पिता, पत्नी और बहन को उनकी याद रुला रही है और वादा खिलाफि से तंग आ गया है यह परिवार.
14 जनवरी 2019 का वह दिन, जब पुलवामा में सीआरपीएफ के 44 जवान साजिशन आतंकी हमले के शिकार हुए, उन्हीं में से एक था भागलपुर के मदारगंज का रतन ठाकुर.
14 फरवरी 2019 की घटना के बाद जब रतन का पार्थिव शरीर उनके पैतृक गांव मदारगंज पहुंची तो वहां लाखों लोगों का जमघट था. जै जै कार के साथ मातमी सन्नाटा के बीच बहन और पत्नी का क्रंदन सुन हर किसी का कलेजा फट रहा था. बड़े बड़े अधिकारी और नेतागण मौजूद थे.
लेकिन ठीक एक साल बाद अब, कोई भी खासकर, पत्रकार शहीद रतन के घर हाल चाल लेने पहुंचते हैं तो शहीद रतन के पुत्र कृष्णा अपने शहीद पिता की तस्वीर से चिपक कर बैठे मिलते है. शायद वह बच्चा पिता क्या चीज है यह कभी अनुभव नहीं कर पायेगा पर पिता के नक्सेकदमो पर चलने का बात करता है.
शहीद रतन के पिता राम निरंजन ठाकुर कहते हैं कि अब उनका कोई नहीं सुन रहा. जिसने भी भरोसा दिया वे भी मुकर रहे हैं. शहीद बेटे को श्रद्धांजलि के लिए स्मारक देने की बात बिहार विधानसभा के पूर्व स्पीकर सदानंद सिंह ने कहा था. चुप रहना उनका मजवुरी है.
शहीद रतन की पत्नी आज भी उनकी याद में खोई सी रहती हैं. कुछ भी पूछने पर कहती हैं कि अब पापा (स्वसुर) ही बताएंगे. पूरे परिवार को अंबानी फाउंडेशन, बिहार सरकार और केंद्र सरकार ने कई तरह की मदद का भरोसा दिया था. बिहार सरकार के मुख्यमंत्री ने गांव का नाम, स्कूल का नाम, पंचायत का नाम शहीद के नाम पर रखने की बात कही थी, वह भी पूरा नहीं हुआ. अंबानी फाउंडेशन से भी भरोसा मिला था, कुछ नहीं हुआ. केंद्र सरकार ने राजधानी में आवास देने की बात कही थी, वह भी नहीं मिला. पीएम की तरफ से 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद परिजनों से मिलने की बात हुई थी, वह भी अभी नहीं हुआ. यहां तक कि पुलवामा घटना की जांच की जानकारी परिजनों को देना था, वह भी अभी तक नहीं बताया गया है.
“अब तो सरकार या अधिकारी की तरफ से हालचाल लेने भी कोई नहीं आता हमारे पास,” दुखी होकर निरंजन ठाकुर कहते है.
अभी भी किराए के मकान में रह बसरा कर रहे हैं. सम्प्रति यह परिवार शहर के लल्लू चक में एक छोटा सा भूखंड खरीदा है. “पत्रकार राजीव सिद्धार्थ ने अपनी जमींन हमें अपेक्षाकृत कम मूल्यों में वेच कर कृपा की है,” निरंजन कहता है.
हलाकि जवान वेटा का चले जाने का गम भी है और आक्रोश भी है शहीद रतन के पिता में. कहते हैं : “रतन के दो अनमोल रतन को पालना और देश के लिए समर्पित करना ही एक मात्र उद्देश्य है”.
शहीद रतन के परिवार को अभी तक कुल 36 लाख रुपये मिले हैं, जिसमें सीआरपीएफ और बिहार सरकार के अलावा समाज के लोगों ने दिया है. वैसे, बिहार सरकार ने शहीद के एक भाई को सरकारी नौकरी दी है और एक निजी स्कूल माउंट एसीसी द्वारा शहीद के पुत्र को निःशुल्क शिक्षा दिया जा रहा है.
“आज हम मदारगंज में श्रद्धान्जलि सभा को मना रहे है विना किसी ठोस व्यवस्था की. हमें उम्मीद थी की हम आज उनका स्मारक पर पूजा कर पायेगे. कोई बात नहीं, पुरे लोग है हमारे साथ साथ, हम तस्वीर रख कर भारत माँ के उस वीर सपूत का पूजा कर रहे है आज यहाँ,” दवी जुवान से राजनंदिनी, शहीद रतन की पत्नी कहती है.
वादा खिलाफी पर खुलकर मुखर हो उठता है मदार गंज के लोग, पवन यादव, भारतीय जनता पार्टी के नेता सह चर्चित समाजसेवी कहते है.
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