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टील्ह उर्फ डीह - अतीत का खज़ाना.


मात्र पांच ढूहों की खुदाई से भागलपुर आ सकता है विश्व के ऐतिहासिक मानचित्र पर

@news5pm

November 23rd, 2017

ब्यूरो रिपोर्ट/

चंपा , चानन एवं गंगा नदी के त्रिवेणी पर बसे भागलपुर में पुरातात्विक धरोहर रूपी ढूहों की भरमार है। फिर भी 19 – 25 नबंवर 2017 तक मनाये जाने वाले विश्व धरोहर सप्ताह मेंं इसे याद करनेवाला कोई नहीं है।

बताते चले की कि बिहार सरकार के पुरातत्व निदेशालय टीम के नेतृत्व कर्त्ता अरविन्द सिन्हा राय के साथ टीम के सदस्यों ने इसी साल मार्च से अकटूबर तक भागलपुर जिले का पुरातात्विक सर्वेक्षण किया और दो सौ से अधिक स्थलों से पुरातात्विक सबूतों को संग्रहित किया।

सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि पचास से अधिक ढूहों ऊर्फ टील्हों ऊर्फ डीहों को चिन्हित कर प्रमाणित किया कि इन ढूहों में सभ्यता एवं संस्कृति की निरंतरता के प्रमाण मिल रहे हैं। विभाग को रिपोर्ट भेजा गया साथ ही साथ प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्रों ने भी इसे सार्वजनिक किया। फिर भी जिला प्रशासन , वि.वि. के इतिहास विभाग एवं पुरातत्व विभाग , इन्टैक जैसी संस्थाओं सहित अन्य संस्थाओं ने इसे अनदेखा कर दिया।

अतीत दफ़न है इस टिल्हे के अन्दर .

ज्ञात हो कि भागलपुर शहर से सटे सबौर एवं गोराडीह अंचल मेंं कुरपटडीह, शिवायडीह, स्वरूपचकडीह मे प्रथम सर्वेक्षण में ही पुरातात्विक सबूत मिले हैं। इन दोनों के अलावा सनोखर डीह , बनोखरडीह , ब्रहमचारी डीह, भंडारीडीह, झिटकाडीह, लगमाडीह, चौधरीडीह, मंनसरडीह, दोस्तनीडीह, कोईलीडीह, बिरनौधडीह माछीपुरडीह, वासुदेवपुरडीह जैसे कई डीहों को खोजकर विभाग को भेजे रिपोर्ट मेंं भागलपुर मेंं प्राचीन काल से मुस्लिम काल तक के सभ्यता संस्कृति की निरंतरता के सबूतों को उजागर किया है।

निदेशालय के निदेशक श्री अतुल कुमार वर्मा ने खुद कुछ ढूहों को देखकर खुदाई करवाने की बात स्वीकारा था। इतिहास की सबसे बडी बिडंबना है कि जब असहाय भारत , ब्रिटिश शासन के अधीन था तो ब्रिटिश प्राचयवादी यानि ओरियंटिलिस्टों ने विश्व के समक्ष भारतीयों की छवि दुनिया के एक सबसे सृजनशील समुदाय के रूप में प्रस्तुत कर रहे थे जिसने तीन हजार वर्षों से अधिक काल तक विकास एवं सभ्यता की प्रभावशाली निरंतरता दर्शायी । लेकिन आज हम धरोहर दिवस पर हम नव प्रमाणित धरोहरों को समक्षना नहीं चाहते या नजरअंदाज कर रहे हैं। भागलपुरवासियों की बिडंबना कहिये या प्रशासन की अनदेखी , या सरकार की उपेक्षानीति । घोषित विक्रमशिला केंद्रीय वि.वि. का हश्र सब देख ही रहे हैं। तब किस काम का विश्व धरोहर सप्ताह ?

आज भी अधुरा है विक्रमशिला का खुदाई का काम.

बिहार सरकार के पुरातत्व निदेशालय ने अपना दल भेज कर इसी वर्ष 2017 मेंं भागलपुर जिला का गहन पुरातात्विक सर्वेक्षण कराकर पचास से अधिक ढूहों को चिन्हित किया है। ज्ञात हो कि बुकानन के बाद बृहद कार्य पहली बार हुआ है। पचास मेंं से मात्र पांच ढूहों उर्फ टील्हों उर्फ डीहों खुदाई से ही विश्व पर्यटन का केन्द्र बन जायेगा भागलपुर ।

पत्थर मइ उकेरा गया अद्भूत कलाकृति .

ज्ञात हो कि राहुल सांकृत्यायन के अनुसार विक्रमशिला बौद्ध महाविहार के आचार्य श्रीज्ञान दीपांकर अतिश (982 – 1054 ई.) का जन्म स्थान भंगल देश के सहौर उर्फ जहौर था जिसे सबौर आज हम बोलते हैं। अतिश के सफल प्रयास से ही तिब्बत में बौद्ध धर्म को राष्ट्रीय धर्म का दर्जा मिला। वर्त्तमान तिब्बत के लामावाद के जनक अंग पुत्र अतिश को ही माना जाता है। अब तक अतिश की शिक्षाओं – उपदेशों पर ही कार्य हुए हैं। किसी ने उनके जन्म स्थान एवं प्रथम कर्म भूमि पर शोध नहीं किया है।

राहुल सांकृत्यायन के विचारों से प्रभावित, इतिहासकार शिव शंकर सिंह पारिजात एवन प्रोफेसर रमन सिन्हा गहन स्थल सर्वेक्षण सह साहित्यिक एवं ऐतिहासिक तथ्यों को कुरेदे  तो दो ढूहों को चिन्हित करने मेंं सफलता मिली थी। प्रथम ओलपुरा (घोघा) एवं द्वितीय सौरडीह (सनोखर) मेंं से ही किसी एक मेंं उनके जन्म, आवास आदि छिपी है।

आचार्य श्रीज्ञान दीपांकर अतिश

भागलपुर के जनप्रतिनिधियों, विश्वविद्यालय सहित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, बिहार पुरातत्व विभाग, जिला प्रशासन संज्ञान लेकर खुदाई कराये तो प्रमाणिक तथ्य सामने आकर अंग गौरव बढायेंगे। वि.वि.द्वारा पूर्व घोषित दीपांकर पीठ बनाकर खुदाई एवं शोध कराया जाना चाहिए। सिंह और प्रोफेसर सिन्हा ने  श्रीज्ञान दीपांकर अतिश के जन्म स्थान पर एक शोध आलेख कानपुर से प्रकाशित एक प्रतिष्ठित जर्नल मेंं प्रकाशित करवा चुके है ।

इन दोनों स्थानों के अलावा सबौर एवं गोराडीह अंचल के स्वरूपचकडीह, कुरपटडीह , शिवायडीह की भी खुदाई होने पर सोने पर सुहागा हो जायेगा। इन ढूहों से प्राचीन काल के सभ्यता संस्कृति के पुरावशेष मिले हैं। खुदाई के विश्व के ऐतिहासिक मानचित्र पर छा सकता है भागलपुर।


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