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निशु जी लोचन/
भागलपुर: बिहार के तमाम उच्च शिक्षा देने वाली तमाम 10 विवि को सरकार का आदेश है कि छात्रों को फेल नहीं करें . क्योंकि सरकारी अनुदान छात्रों के पास होने पर ही दिया जा सकता है . अब उस ब्रह्म वाकया को विवि इस कदर पालन कर रही है की उसमे उच्च शिक्षा कि गुणवत्ता हासिये पर है . साधन और संसाधन के आभाव में तमाम विवि तो पहले से ही कुहर रही है . अब देखिये , बिहार के तमाम 10 विवि में मात्र 6079 प्रोफ़ेसर ही पढ़ाने के लिए बचे हैं जबकि स्वीकृत पद 13564 है . यानी 7845 प्रोफ़ेसर के पद खाली हैं . अब सालाना खर्च भी बताते हैं . बिहार के तमाम विवि के एक वित्तीय वर्ष में यानी सालाना 2834 करोड़ रूपये विवि के तमाम कार्यों के लिए सरकार देती है लेकिन कहीं समय पर परीक्षा नहीं होती तो कही समय पर रिजल्ट नहीं मिलता . यानि पढ़ाने वाले भी कम हैं तो परीक्षा और रिजल्ट में देरी के साथ छात्रों का मेरिट भी सवाल के दायरे में है . बात अगर भागलपुर के तिलकामांझी विवि कि करें तो वहां 29 सरकारी कॉलेज के आलावा 28 कॉलेज तिलकामांझी विवि से संबध हैं . सरकार कि तरफ से सालाना 396 करोड़ रूपये विवि संचालन के लिए दिया जाता है . लेकिन वहां भी 1479 प्रोफेसरों में से मात्र 676 प्रोफ़ेसर ही कार्यरत हैं . आज भी 803 पद प्रोफ़ेसर के खाली पड़े हैं . विवि का हाल है कि वहां छात्रों के परीक्षा में लिखने के लिए उत्तर पुस्तिका नहीं है , जबकि विवि का अपना प्रेस है . लेकिन वहां कागज कि आपूर्ति नहीं हो पा रही है . पिछले दिनों विवि के हिंदी विभाग में परीक्षा रद्द करना पड़ा था क्योंकि प्रश्नपत्र नहीं थे . तिलकामांझी विवि के नए कुलपति प्रोफ़ेसर नलिनी कान्त झा कहते हैं कि प्रोफ़ेसर कि कमी कि समस्या बड़ा ही विकराल है और पर्याप्त पैसे भी नहीं मिलते , वाबजूद उसके हम तिलकामांझी विवि भागलपुर को सेन्ट्रल विवि जरुर बना देंगे . कुलपति महोदय का दावा और जमीनी हकीकत के बीच जो द्वन्द तिलकामांझी विवि भागलपुर में है वह उन्हें विरासत से मिली है .
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