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President of India, Pranav Mukherjee at Vikramshila.
शिव शंकर सिंह पारिजात /
कहते हैं अवसर के माथे पर सिंघ नहीं होते और इसकी पीठ के पीछे पूंछ नहीं होती। मतलब ये कि दूरदृष्टि से ही अवसर को पहचाना जा सकता है क्यूंकि इसके सर पर कोई ‘लेबल’ लगा नहीं होता, और, चूक जाने से गया अवसर फिर वापिस नहीं आता; क्योंकि इसकी कोई पूंछ नहीं होती कि पीछे से पकड़ लें। पिछले एक सप्ताह के दौरान बिहार व झारखंड के सीमावर्ती जिले भागलपुर तथा साहिबगंज में हुईं घटनाएं नियति के इस सत्य को बयां कर गई।
इस सप्ताह 3 अप्रैल को भारत के माननीय राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी भागलपुर जिला के कहलगाँव स्थित ऐतिहासिक विक्रमशिला बौद्ध महाविहार के परिदर्शन हेतु आये थे। इसी सप्ताह 6 अप्रैल को देश के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी 2266 करोड़ की लागत से गंगा पर बन रहे छह किमी लम्बे फोरलेन पुल का शिलान्यास करने आये। यदि थोड़ी गंभीरता से गौर करें, तो सपनों के टूटकर बिखरने का सारा दर्द इन दो घटनाओं के बीच छिपा है।
पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान बिहार-झारखंड में कम्पेन करते हुए श्री नरेन्द्र मोदी ने उनकी सरकार बनने पर बिहार में भागलपुर जिला स्थित विक्रमशिला महाविहार के नाम पर केन्द्रीय विश्वविद्यालय स्थापित करने व झारखंड के साहिबगंज में गंगा पर फोरलेन पुल बनाने की बात कही थी। केन्द्र में उनकी सरकार बन जाने पर इनकी विधिवत घोषणा भी कर दी गई। राज्य हित में झारखंड सरकार ने पूरी तत्परता से जरूरी जमीनी कार्रवाई पूरी कर प्रधानमंत्री के सहिबगंज आगमन के अवसर का लाभ उठाते हुए वहां पर बननेवाले महत्वाकांक्षी गंगापुल योजना का शिलान्यास करवा लिया। पर इस दौरान बिहार सरकार विक्रमशिला के नाम पर बननेवाले केन्द्रीय विश्वविद्यालय की दिशा में ओछी मानसिकता के तहत गो-स्लो की नीति पर चलते हुए सोयी रह गई। दो साल बीतने को है, इस हेतु जमीन अधिग्रहण की कोई कारगर कार्रवाई नहीं कर पाई। और, महामहिम राष्ट्रपति जैसी हस्ती के विक्रमशिला आने पर भी उसके नाम पर बननेवाले केन्द्रीय विश्वविद्यालय के शिलान्यास हेतु कोई तत्परता न दिखा पाई। विक्रमशिला के नाम पर केन्द्रीय विश्वविद्यालय बनने से न सिर्फ इस प्रचीन बौद्ध महाविहार का खोया गौरव वापस आयेगा, वरन् शिक्षा के क्षेत्र में भागलपुर तथा बिहार की राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय छवि भी निखरेगी।
यदि यही रवैया रहा तो भविष्य में हम और भी कई अवसर खोने जा रहे हैं। साहिबगंज भ्रमण के दौरान प्रधानमंत्री श्री मोदी ने 311 किमी लंबी गोबिन्दपुर-साहिबगंज सड़क का लोकार्पण किया, जिससे साहिबगंज से धनबाद जाने में 12 घंटे की बजाय महज 5 घंटे लगेंगे तथा 280 करोड़ की लागत से वहां बननेवाले मल्टी माडल टर्मिनल की आधारशिला रखी, जिसके बनने के बाद झारखंड बंगाल की खाड़ी के माध्यम से सम्पूर्ण विश्व से जुड़ जायेगा। भागलपुर से साहिबगंज की दूरी महज 75 किमी के करीब है। यदि भागलपुर से साहिबगंज जाने का मार्ग सुगम हो जाय तो बिहार का यह प्रक्षेत्र भी उक्त दोनों परियोजनाओं के लाभ उठा सकता है। पर जगजाहिर है कि भागलपुर से कहलगाँव-पीरपैंती होकर साहिबगंज जानेवाला रास्ता वर्षों से बद से बदतर हालत में है और इसके निर्माण-मरम्मती की दिशा सरकार-प्रशासन सोई पड़ी है। मतलब यह कि आनेवाले दिनों में हम इन योजनाओं के लाभ से भी वंचित होनेवाले हैं जिनपर देश के नागरिक होने के नाते हमारा हक बनता है। जिस तरह बेरहमी से जनमानस के सपनों के इस शीशमहल को तोड़ा जा रहा है, उसकी किरची किसी न किसी के पैर में जरुर चुभेगी।
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