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निशु जी लोचन/
सीमांचल का मैला आँचल आज भी फणीश्वर नाथ रेणु रचित उपन्यास से मेल खा रही है. साल दर साल इलाके में बाढ़ से तबाही हर साल नई पटकथा लिखते जा रही है. तबाही चाहे कोशी की धारा से हो, गंगा की धारा से हो या फिर महानंदा की मंझधार से हो … सीमांचल की आंचल आज भी तार तार हो रही है.
नेपाल होकर स्वर्ग से धरती पर उतर जीवनदान वाली नदियां अब जीवन लीला को चुटकी बजाते लील रही हैं. पिछले एक सप्ताह से अबतक जो तबाही दिखी उसमे तकरीबन 300 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. ऊंचे बांध और ऊंची सड़क पर शरण लिए हुए हैं, मानो जिन्दगी ठहर सी गयी है. कर्ताधर्ता व्यवस्था कम, भरोसा ज्यादा दे रहे हैं. तबाही का मंजर दिखाते हुए सिर्फ इतनी सी बात कही जा सकती है इलाके में उम्र कैद से सजा ए मौत मिलती है ….
जोगबनी और कटिहार रेलखंड में रेल की पटरी, जल सैलाब में इस कदर उखड़ा है कि रेल परिचालन बाधित है. स्टेशन पर लाल बत्ती जली है और रेलगाड़ी खड़ी है. देश के पुर्बोतर राज्यों से सम्पर्क कट चूका है. तबाही का मंजर अब और सताने वाली है. महामारी की आशंका खासकर बाढ़ पीड़ित इलाकों में एक और तबाही लाने वाली है. जहां तक नजर गई सड़कों पर शरण लिए लोग नजर आए. प्रधानमंत्री चतुर्भुज योजना की फोरलेन सड़क को बाढ़ पीड़ितों ने मजबूरी में आशियाना बना लिया है.
कुदरत के कहर ने अररिया जीरोमाइल से किशनगंज के बीच 11 जगहों पर पूल पुलिया तोड़ दिया और 9 जगहों पर सड़क काट दी. अब वाजिव सवाल मन में आई कि नदियां इतनी गुस्से में क्यों ? अररिया की एक घटना को देखिए … एक मां अपने बच्चे के साथ वैतरणी पार करना चाह रही थी कि अचानक पानी मे बह गई… तीनों की मौत हो गई. तबाही के इस मंजर में नदियां कितनी दोषी, इंसान कितना दोषी कह पाना बड़ा मुश्किल है. ध्वस्त हुए पूल के पास शर्मा जी मिले, बड़ी गुस्से में थे. बताने लगे ये जो तबाही है उसका बड़ा कारण कोशी बराज है.
बाढ़ विशेषज्ञ और नीतीश कुमार स्वयं मानते हैं कि बराज या सदाबहार नदियों को बांधना, बेड़ी पहनाने जैसा है. नदियों के लिए बड़ी सज़ा है. लेकिन नदियों की वह सज़ा आज इलाके के लोगों के लिए उम्र कैद से लेकर सजा ए मौत की सबब बन चुकी है. आखिर कब तलक सीमांचल का आँचल और मैली होती रहेगी….?
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