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निशु जी लोचन/
पिछले एक दशक से भागलपुर इलाके में उजला हीरा जिसमे मुख्यत उजला बालू और उजला राख है, इलाके के लिए अभिशाप बना हुआ है . अब आप सोच रहे होंगे की वह उजला बालू और उजला राख है क्या और उससे ज्यादा तबाही भागलपुर इलाके में ही क्यों हो रही है तो पढ़िए इस रिपोर्ट को –
गंगा नदी में फरक्का बांध के कारण जमा सिल्ट यानी गाद अभी के मौसम में नदी की सतह पर पानी की जगह उजले बालू के रूप में दीखता है . बिहार के मुख्य मंत्री नितीश कुमार सहित सिचाई मंत्री राजीव रंजन उर्फ़ ललन सिंह कहते हैं की यही उजला बालू यानि गाद बिहार को तबाह कर रहा है . नितीश कुमार इसके लिए एक लम्बी लड़ाई लड़ने की तैयारी में है.
खासकर भागलपुर से फरक्का तक भारी मात्रा में सिल्ट का जमाव गंगा के प्रवाह मार्ग में हो गया है . और जल के बहाव के बजाय जल प्लावन इलाके की अबादी को तबाह कर रहा है. पिछले साल आये बाढ़ का कहर का बजह सिल्ट ही था. यैसा तबाही का मंजर शयद इलाके में पहला था.
अब उजले राख का राज जानिए . उजले बालू से मिलता जुलता उजला राख का ढेर है जो एन टी पी सी कहलगांव से निकला हुआ है . 80 के दशक में बना कहलगांव का एन टी पी सी अब 2340 मेगावाट बिजली सरकार को दे रही है लेकिन इलाके में जो राख का ढेर पांच बड़े बड़े लैगून (तालाब) में भरा हुआ है वह न सिर्फ इंसानी जीवन के लिए बल्कि वातावरण के लिए भी खतरनाक साबित हो रहा है. इलाके के मौजूदा सांसद बुलो मंडल , पूर्व सांसद शाहनवाज़ हुसैन और एन टी पी सी कहलगांव के जीएम राकेश सैमुअल भी मानते है की राख कि समस्या अब तो और भी विकराल होती जा रही है . उजला बालू और उजला राख अगर अभिशाप बना हुआ है तो यह वरदान हो सकता है .
उजला बालू और उजला राख हमारे लिए काफी उपोयोगी है पर दुर्भ्याग से इसका सही उपोयोग का तरीका हम अभी तक निकल नही पाये है. इसका सही उपोयोग से इलके के तस्वीर बदल सकता है.
मालूम हो की सिमेंट बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाली सामग्री में 60 प्रतिशत इसी राख को मिलाया जाता है . दुर्भाग्य है की भागलपुर के कहलगांव एन टी पी सी के सटे एक भी सिमेंट उद्योग नहीं है. सरकारी उदासीनता के चलते स्टार सीमेंट जैसे वढ़े कंपनी बिअडा में जमीन बिबाद के चलते यहाँ काम शुरू नही कर सका. अब जलपोत निर्माण और सड़क निर्माण में राख का इस्तेमाल किसी तरह हो रहा है . उसी तरीके से गंगा नदी में जमा हुए गाद यानी उजले बालू का इस्तेमाल लाल बालू कि तरह भी किया जा सकता है . खासकर सड़क निर्माण कार्यों में भराई का काम हो या फिर कोल माईनस इलाके में अंडर ग्राउंड होल को भरने का . गंगा के गाद का इस्तेमाल तो किया ही जा सकता है.
जानकारों के अनुसार सरकार के उदासीनता के चलते अबतक इसके लिए कोई ठोस नीति बन नहीं पाया है. पर इसका सही प्रबंधन से इलके का तक़दीर बदल सकता है.
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