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शिव शंकर सिंह पारिजात/
आजादी के तकरीबन 70 साल बीत जाने के बाद भी देश के आम आदमी से लेकर राजनीतिक टिप्पणीकार तक देश में ‘लोकतंत्र’ की तलाश में बेहाल से लगते हैं। अब तो यह जुमला चलते-चलाते आमतौर पर सुनने को मिल जाता है कि देश का ‘तंत्र’ अब ‘लोक’ से दूर-सा हो गया है। जनतंत्र के ‘ऑफ द पीपुल’, ‘फोर द पीपुल’और ‘बाय द पीपुल’ के महत्वाकांक्षी सिद्धांत पर चुने गये नुमाइंदों ने अब अपनी सुख-सुविधा व ठसक प्रदर्शन का अपना एक अलग तरह का संविधान रच रखा है जिसकी चमक-दमक में जनता की आँखे चौंधियाते जा रही है। आम आदमी से खास आदमी अर्थात् VVIP की इसी दूरी को पाटने की मंशा से ही शायद प्रधानमंत्री मोदी ने सरकारी गाड़ियों से लालबत्ती हटाने का फरमान जारी किया है जिसका सभी ने स्वागत किया है। भीआईपी गाड़ियों से लालबत्तियां उतरने भी लगी हैं। इस ‘रोजी-रोजी’ घोषणा से बनते ‘फीलगुड’ वाले माहौल में अंग्रेजी की चर्चित कालम लेखिका सागरिका घोष ने बड़ा ही माकूल सवाल उठाया हैः ‘भीआईपी गाड़ियों की लालबत्तियां तो स्वीच ऑफ कर दी गई हैं, पर क्या उनके पावर में कट हुआ है ?’ सवाल यह भी है कि उठता है कि क्या हमारे भीआईपी आम नागरिक की पीड़ा को कभी समझ भी पायेंगे ?
हमारी विडम्बना यह है कि यहाँ ‘लोक’ और ‘तंत्र’ – ‘Public’ तथा ‘Republic’ के बीच के संतुलन व मिलन के बिंदु इतने धूमिल हो गये हैं कि ‘डेमोक्रेसी’ की परिभाषा एवं ‘आशा’ को तार-तार कर बेजार कर रहे हैं। जनता अर्थात् Public की ‘सेवा’ बोले तो ‘नौकरी’ करने का वादा कर सत्ता के सिंहासन पर काबिज होनेवाले नेता सबसे पहले अपने को ‘पब्लिक’ के ‘दायरे’ याने Realm से दूर कर लेते हैं। उनके बंगले आम रिहायशी मुहल्ले में न होकर भीआईपी एरिया में होते हैं। वे पब्लिक ट्रांसपोर्ट का भूलकर भी नहीं । उनके बच्चे पब्लिक स्कूल में नहीं पढ़ते। अगर उनको पब्लिक लाईन में लगना पड़े तो उनके चेहरे ‘रेड’ हो जाते है। टाल नाके पर दो मिनट उनकी गाड़ी डिटेन हो जाये तो लाल-पीले हो जाते हैं। ट्रैफिक की रेड लाईट को जम्प करने में उनको झिझक नहीं होती। पब्लिक के बीच महाराजा स्टाईल में अवतरित होना उन्हें बहुत भाता है। अब पब्लिक सर पटककर यह पूछे कि इस रिपब्लिक में पब्लिक का क्या हुआ, तो इसमें आश्चर्य क्या। भीआईपी गाड़ियों से रेड लाईट तो उतार दिया, पर उन ब्लैक कैट का क्या, जो अभी भी उनके आगे-पीछे पावर सिम्बल बन घूम रहे हैं – तो ये पावर कट कैसा ? आखिर रेड लाईट भी तो ही था। उनके पावर कट कहाँ हुआ, ये तो अभी भी ‘फूल’ है -तीमारदारी में कमी आई तो एयर इंडिया के ऑफिसर को भी चप्पल रसीदने से परहेज नहीं ?! और बेचारी जनता की नियति : इसे रेड लाईट तभी नसीब होता है जब वह एम्बुलेंस पर बैठती है, और, उसके बदन को एसी की हवा तभी लगती है जब वह आईसीयू में भर्ती होता है।
आम जनता की जिल्लतें व जलालतें बेइंतिहां हैं, क्या नेता कभी इसे समझ पायेंगे। फिर नेताओं के रेड लाईट की चाहत व रेड कार्पेट की भूख का भी कोई अंत नहीं। आखिर सत्ता की चाहत ही तो उन्हें पालिटिक्स में खीचकर लाती है। प्रधानमंत्री मोदी का देश इसके लिये तो जरूर शुक्रगुजार रहेगा कि भीआईपी गाड़ियों से रेड लाईट उतरवाकर उन्होंने सत्ता की भूखी व पब्लिक से कटी मौजूदा पालिटिक्स को ‘रेड लाईट एरिया’ बनने से बचा लिया। पर देखने वाली बात ये होगी कि इतना बड़ा फैसला सिर्फ ‘नारा’ बनकर न रह जाये।
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