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निशु जी लोचन/
बिहार के लिए हिमालियन रेंज से निकली नदियों द्वारा बहाकर लायी गयी गाद अब बाढ़ कि तबाही के अलावा ठनका यानि बज्रपात का बड़ा कारण बन गया है . भूगोलविदों की माने तो उनके रिसर्च के मुताबिक पिछले तीन वर्षों में तक़रीबन 300 लोगों कि मौत का इलाका गंगा का गाद वाला इलाका बनता जा रहा है . 180 किलोमीटर रेडियस में फैला वह इलाका गेंगेटिक ज़ोन है जिसमें गंगा और कोशी के इलाके शामिल हैं . यानी कभी बाढ़ से तो कभी सुखाड़ से तबाही तो आपने झेली है अब ठनके कि वजह से तबाही भी बढ़ने वाली है और उसका कारण भी गंगा नदी का सिल्ट है.
बिहार सरकार के सिचाई मंत्री राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह जब पिछले दिनों भागलपुर के दौरे पर थे टी बताया था की यही उजला बालू यानी गाद बिहार में बड़ी और भारी तबाही का कारण बनती जा रही है.
मंत्री जी तो सिर्फ बाढ़ की तबाही को गाद से जोड़कर देख रहे थे लेकिन भागलपुर के तिलकामांझी विवि में भुगोल विभाग के हेड डॉ एस एन पाण्डेय का रिसर्च है की कैरी रिभर गंगा में जमा होती जा रही गाद, बाढ़ से तबाही तो फ्लड के समय करती है लेकिन उसके पहले के मौसम में यानी अप्रैल , मई और मध्य जून तक गैन्गेटिक ज़ोन में जो बज्रपात ज्यादा होने लगा है उसके पीछे का कारण भी फरक्का बांध के कारण जमा होता जा रहा गाद है. डॉ पाण्डेय कहते हैं की इस मौसम में तपती धूप और गर्म होती धरती के बीच से भू गर्भिय जल और नीचे खिसक जाना भी बज्रापात का बड़ा कारण बनता जा रहा है . रिसर्च में टेरा रोसा के कारण पिछले तीन वर्षों में तक़रीबन 300 लोगों की मौत बज्रपात के चपेट में आने कि वजह से हुई है.
दरअसल टेरा रोसा सूखी और तपती धरती पर वातावरण की वह प्रक्रिया है जिसमें नमी की कमी के कारण आसमान में उत्पन्न तड़ित को अवशोषित करने की क्षमता समाप्त हो जाती है. खासकर जब मार्च, अप्रैल , मई और मध्य जून तक नदियों में जल की मात्रा कम जाती हो और जब वहां साल दर साल गाद का जमाव बढ़ता और फैलता जा रहा हो तब टेरा रोसा के प्रकोप में बज्रपात ज्यादा खतरनाक होने लगती है.
पिछले दिनों बिहार के सीएम नितीश कुमार और भारत सरकार के मंत्री उमा भारती के सुर सिल्ट के मसले पर एक जैसे दिखे . अगर सही अर्थों में सिल्ट मैनेजमेंट की प्रक्रिया शुरू होती है तो न सिर्फ बाढ़ से तबाही कम होगी बल्कि जो सिल्ट, टेरा रोसा के कारण बज्रपात में बदलती है उससे भी निजात मिल सकती है.
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