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किउल नदी का पहचान केवल रेल ब्रिज से रह गया है.


उत्तर प्रदेश में विलुप्त हुई सरस्वती जैसी पूर्वी बिहार में भी किउल नदी आज खो रही अपनी पहचान!

@news5pm

June 17th, 2017

ब्यूरो रिपोर्ट/

गंगा नदी भारत की सभ्यता का जननी है क्यों कि इस देश की बहुत बडा हिस्सा को सजाया सम्भारा है और इन जगहों इस नदी के कारण इन जगहों का अपना पहचान  है. ठीक इस प्रकार, गंगा के अलावे बहुत सारी नदी है जैसा की किउल नदी.

धर्मं ग्रंथो में बर्नीत किउल अति प्राचीन नदी है जो पूर्वी बिहार के एक सहायक नदी है. किउल नदी के किनारे प्राचीन बुद्ध युग कालीन सभ्यता पनपने के साथ साथ आज के गिरिडीह , जमुई, लखीसराय भी  विकसित  हुआ है. पर मानव सभत्या के दूसरी पहेलु यानि विनाश का भेट चढ़ चुकी है आज यह नदी.

उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में जिस प्रकार गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है, उसी तरह लखीसराय में किऊल, हरूहर और गंगा नदी का संगम है. जैसा की बहां सरस्वती विलुप्त हो चुकी है और यहां किऊल नदी भी आज विलुप्त होने के कगार पर पहुच चुकी है.

तक़रीवन 111 किलोमीटर लम्बी  किऊल एक पठारी नदी है, जो झारखण्ड के गिरिडीह जिला के तीसरी हिल रेंज से निकलकर जमुई जिले में बिहार में प्रवेश करती है. उद्गम से लगकर मुहाने तक यह नदी ढलान पर है. इस नदी में बरनार, अंजन,  पंचानन, संकरी, हरूहर जैसी बड़ी नदियों के अलावा आधा दर्जन छोटी नदियां समाहित होती हैं. किउल नदी लखीसराय के सुराजगढ़ा में आकर गंगा से मिलती है.

किउल नदी में पानी के आलावे बालू ही बालू रह गया है.

 

“आज से कुछ साल पहेले नदी में पानी रहा करती थी पर किऊल नदी में अब पानी के बदले गाद, बालू और झाड़ियां दिखाई देती है. बारिश के दिनों में पानी से लबालब भरी रहने वाली इस नदी में बाकी मौसमों में सिर्फ रेत ही दिखती है, कुछ-कुछ जगहों पर संकरी नाली की तरह नदी दिखती है. बारिश की कमी और बालू के व्यापक खनन के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है,” कहते है इलाके के सामाजिक कार्यकर्ता किशोर जयसवाल. जयसवाल इलाके में जल कार्यकर्ता के रूप में एक अलग पहचान है.

जयसवाल जैसे इलाके के दर्ज़नो प्रबुद्ध लोगो ने किउल नदी की विषेषताओ को दर्शाते हुए इस नदी के बालू के नीचे गुम होने से उत्पन्न बिकट परिस्थितिओ वारे विस्तार से बताते है. दुनिया की अनोखी टाल क्षेत्र जो मोकामा से लखीसराय तक तक़रीबन 1062 स्कू. कि. मी. तक फैला है, उपजाऊ जमीन के लिया एक समय बिख्यात था. पूरा टाल क्षेत्र में किउल तथा हरूहर नदी सिचाई का जरिया था. पर अब नदियो का सुख जाने से टाल का क्या दशा हुआ, हम सभी इससे अबगत है.

जानकारों के अनुसार जलाशय योजना  भी जिम्मेदार है इस नदी को सुख जाने के लिए. मालूम हो की नदी के प्रवाह को रोकने के लिए गड़ही जलाशय योजना (जमुई) एवं कुंदर जलाशय योजना (लखीसराय), सत्तर दशक में बनाया गया था क्षेत्र में सिचाई के लिये. पर इन सारे जलाशय योजना भी जिम्मेदार हैं नदी के मृत बनाने के लिए, इन जलाशयों में पानी रोककर अपर एवं लोअर किऊल जलाशय योजना के माध्यम से खेतों तक पानी पहुंचाया जाता है.

यह नदी चुकी पठारी से निकलती है, यह अपने साथ  बालू ढोकर लाती है. पर नदी में पानी नहीं रहने से बालू की गुणवत्ता भी कम हो रही है. इस कारण टेंडर प्रक्रिया में अधिक बोली लगाने से लोग कतराते हैं. लखीसराय-जमुई एकीकृत नदी बालू घाट का पिछले वर्ष करीब 48 करोड़ रुपये से ज्यादा में टेंडर हुआ. आने वाले समय में इस कारण राजस्व का नुकसान होने का अनुमान है.

किउल नदी के सुखने से दो जिलों में सूखे की चपेट में आ चूका है. नदी सूखने के कारण लखीसराय और जमुई जिले सूखे की चपेट में हैं. नदी के विलुप्त होने की स्थिति में सिचाई परियोजना और जलाशय बेकार हो जाएंगे.

संजय कुमार, लखीसराय जिले के घोशेठ निवासी एक प्रबुद्द किसान के अनुसार यदि सरकार और क्षेत्र के लोग जागरूक नही होता है तो किउल नदी की नाश के साथ साथ इलके में तवाही का मंजर दिखने को मिलेगा. “अभी भी समय है, हमें इस नदी के प्रति गंभीर होना पढ़ेगा नहीं तो आनेवाले समय में किसी भी बढ़ी अनहोनी को कोई भी रोक नही सकेगा,” नरेन्द्र कुमार, लखीसराय के एक समाजसेवी वेवाक् कहता है.


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