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ब्रजेश वर्मा/
1917 में जब लेनिन के नेतृत्व में रूस में जार निकोलस के खिलाफ एक खूनी क्रांति खेली जानी शुरू हुई थी, भारत में मोहनदास करमचंद गांधी ने बिहार के चम्पारण से अंग्रेजों के विरोध में एक ऐसा अहिंसक आन्दोलन शुरू किया दुनिया जिसकी कायल हो गयी और फिर जिसे 60 के दशक में अमेरिका में रंग-भेद के खिलाफ मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने भी अपनाया.
अभी हल ही में 1912 में बिहार बंगाल से एक अलग प्रान्त घोषित हुआ था. पर बिहार के चंपारण के किसानों के हालत बहुत पहले से ही बिगड़ चुके थे.
फिर भी चंपारण आने तक गाँधी बापू नहीं कहलाये थे. चंपारण ने गांधी को वो दिया जिसके बाद वे बापू कहलाने लगे.
आज 18 अप्रैल 2017 है. ठीक एक सौ साल पहले इसी दिन चंपारण में क्या हुआ था ? आज की तारीख में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को यह अवसर मिला कि वे चम्पारण में सात किलोमीटर की पैदल यात्रा कर गांधी के आन्दोनल को याद करें.
सौ साल पहले 18 अप्रैल 1917 को गाँधी को मोतिहारी के अनुमंडलाधिकारी की अदालत में पेश होना था. वे यहाँ के किसानों के लिए लड़ने आये थे जो नील की खेती की वजह से बर्बाद हो चुके थे.
18 अप्रैल के आगे गांधी के पास भविष्य का कोई कार्यक्रम नहीं था. अतः उन्होंने अपने सहयोगियों से पूछा कि वे यदि जेल चले गए तो लोग क्या करेंगे?
तब धरनी बाबू ने कहा कि यदि गाँधी जी जेल चले गए तो उनके कार्य को वे आगे बढ़ाएंगे.
इस उत्तर से गांधी जी संतुष्ट नहीं हुए. उनके मन में कुछ शंकाएं थी. गांधी जी सोचते रहे. जब वे अदालत धरनी बाबू से साथ जा रहे थे तो उन्होंने गांधी जी के सामने फिर अपनी बात दोहराई. तब गांधी ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि वे सफल होंगे.
18 अप्रैल 1917 भारत की आजादी के लड़ाई के लिए एक नया दिन था. उसी दिन लोगों ने गांधी के नेतृत्व में जेल जाने की ठान ली थी.
डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी पुस्तक सत्याग्रह इन चंपारण में लिखा है कि उसी दिन भारतवर्ष को सत्याग्रह का पहला पाठ एवं पहला आधुनिक उदहारण मिलने वाला था जो शीध्र ही देश के सम्मुख आशा एवं ज्योति का द्वार खोलने वाला था.
फिर तो समय कभी नहीं रुका. एक ऐसा आन्दोलन शुरू हुआ जिसे दुनिया ने देखा.
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