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शिव शंकर सिंह पारिजात
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सुनहरे सपनों को देखकर खुश होने और झटके में उसके बिखरने के बीच तिल-तिलकर टूटने की त्रासद स्थिति को संजीदगी से महसूस करना हो तो कोई विक्रमशिला के पुरावशेषों के नजदीक जाकर उसकी सिसकियों को सुने जो उसके दिल की गहराइयों में लगे सियासी चोटों से बरबस निकल रही है। बात हो रही है विक्रमशिला के नाम से केन्द्र सरकार द्वारा घोषित केन्द्रीय विश्वविद्यालय की और उसपर हो रही सियासी तिकड़मों व टुच्ची राजनीति की।
3 अप्रैल,17 का दिन भागलपुर और खासकर विक्रमशिला के लिये ऐतिहासिक दिन था जब इसकी गौरवगाथा से आल्हादित देश के माननीय राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने अपने सम्मान में वहां पर आयोजित सभा में कहा कि इस धरोहर के चतुर्दिक विकास के लिये वे कदम उठायेंगे। उन्होंने करतल ध्वनि के बीच कहा कि सभा में उपस्थित केन्द्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूढ़ी ने उन्हें बताया है कि माननीय प्रधानमंत्री के द्वारा विक्रमशिला के नाम पर केन्द्रीय विश्वविद्यालय खोलने की घोषणा की गई है जिसके शीघ्र कार्यान्वयन के लिये वे प्रधानमंत्री से बात करेंगे।
पर उसी दिन आरटीआई एक्टविस्ट अजीत कुमार सिंह के फेसबुक वाल पर पोस्ट किये गये भागलपुर समाहरणालय के लोक सूचना पदाधिकारी के पत्र को पढ़कर घोर निराशा हुई जिसके द्वारा आरटीआई के तहत मांगी गई सूचना के जवाब में कहा गया है कि “भागलपुर जिला में विक्रमशिला विश्वविद्यालय की जगह एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय स्थापित किये जाने के संबंध में बिहार सरकार से कोई भी निर्देश इस कार्यालय को नहीं है।” फिर लिखा है – फलस्वरूप भू-अर्जन के लिये कोई भी कार्यवाही इस कार्यालय के द्वारा नहीं की गई है।
तभी नजर अजीतजी के एक दूसरे पोस्ट पर जाती है जो कि भारत सरकार के उच्चतर शिक्षा विभाग के सचिव का है और बिहार के मुख्य सचिव को संबोधित है। 8 दिसंबर, 16 के इस पत्र के द्वारा विक्रमशिला के ऐतिहासिक स्थल के निकट केन्द्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना संबंधी पूर्व के पत्रों का हवाला देते हुए मुख्य सचिव को कहा गया है कि राज्य सरकार द्वारा इस दिशा में की गई कार्रवाई की कोई सूचना उन्हें नहीं दी गई।
कहने का लब्बोलुआब यह कि उक्त वर्णित सारी स्थितियां विक्रमशिला के प्रति राज्य सरकार की घोर उदासीनता, जिला प्रशासन की शिथिलता, जन प्रतिनिधियों की काहिलता व जन आकांक्षाओं निरीहता का द्योतक नहीं तो और क्या ? क्या ऐसे रवैये से कभी धरातल पर उतर सकेगा विक्रमशिला केन्द्रीय विश्वविद्यालय का सपना और बहुर पायेंगे विक्रमशिला के दिन।
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