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“शराबबंदी, जीविका दीदी और सखी मंडल”

@news5pm

April 11th, 2017

शिव शंकर सिंह पारिजात

 

3 अप्रैल,17 का दिन। पड़ोसी राज्य झारखंड के साहिबगंज जिला मुख्यालय का पुलिस लाईन मैदान। मंच पर मौजूद देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी। उनको सुनने-देखने को उमड़ा हजारों की संख्या में जन समुदाय।

प्रधानमंत्री साहिबगंज-मनिहारी के बीच 2266 करोड़ की लागत से गंगा पर बननेवाले फोरलेन पुल व 280 करोड़ की लागत से साहिबगंज में बननेवाले मल्टी माडल टरमिनल की आधारशिलाएं रखने के बाद नवगठित सखी मंडल की महिलाओं के बीच डिजिटल व कैशलेस को बढ़ावा देने हेतु स्मार्टफोन का वितरण के दौरान सहसा एक महिला से पूछ बैठे – आपको मोबाईल एप की जानकारी है, क्या आप भीम के बारे में जानती हैं ? क्या आप इन्हें डाउनलोड कर सकती हैं ? जब उस आदिवासी महिला ने सभी प्रश्नों के सकारात्मक उत्तर दे डाले, तो प्रधानमंत्री ने उत्फुल्लता के साथ कहाः पार्लियामेंट में अशिक्षा व जागरूकता के अभाव की दुहाईयां देते हुए जो लोग डिजिटल व कैशलेस पर सवाल उठाते हैं कि सुदूर ग्रामीण ईलाकों में ये कैसे सफल होगा, उन्हें मैं करारा जवाब दूंगा कि आप झारखंड जाइए जहाँ की आदिवासी बहनें आपको एप्लीकेशन सिखा सकती हैं। उन्होंने तो यहां तक कह डाला कि नोटबंदी के बाद मोबाईल बैंकिंग का जमाना है और यह नया रिवाल्यूशन है  जो महिला सशक्तिकरण का नया औजार भी बनेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि साहिबगंज की कहानी वे अब संसद में भी सुनायेंगे।

प्रधानमंत्री श्री मोदी ने उस दिन 953 सखी मंडल के बीच स्मार्टफोन का वितरण किया। झारखंड सरकार ने नवगठित सखी मंडल के माध्यम से राज्य की मेहनतकश महिलाओं को सशक्त बनाने की मंशा से 32 हजार गाँवों के 4 लाख 80 हजार महिला उद्यमी तैयार करने की योजना बनाई है ताकि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन वे अपनी जिंदगी में बदलाव ला सकें। समूह की महिलाओं को स्मार्टफोन उपलब्ध कराकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ मजबूत करने के डिजिटल इंडिया व कैशलेस ईकोनोमी को ग्रासरूट तक पहुंचाने की भी मंशा इसमें अन्तर्निहित है जो एक बिलकुल नई सोच है तथा महिला सशक्तिकरण के नाम पर किये जानेवाले रूटीनी सोच से बिल्कुल अलग दिखता है।

महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में बिहार की जीविका दीदियों ने भी राज्य-राष्ट्र स्तर पर अपनी एक अलग पहचान बनाई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने ड्रीम प्रोजेक्ट शराबबंदी की प्रेरणा इन्हीं दीदियों के आंदोलनों से मिली ही इसके सफल इम्पलीमेंटेशन में भी इनका भरपूर सहयोग मिला। सरकारी व सामाजिक स्तर पर ऊनकी खूब पीठ भी थपथपाई गई। उनको आत्मनिर्भर बनाने की मंशा से गांव-प्रखंड स्तर पर बड़ी संख्या में उनके समूह बनाकर आर्थिक स्वावलंबन हेतु फिनांसिंग भी की जा रही है। पर अभीतक उनके आर्थिक स्वावलंबन की कोई मुकम्मल तस्वीर उभर कर नहीं आ पाई है। नोटबंदी के उपरांत बदलते आर्थिक परिदृश्य में उनकी भूमिका वांछित ही नहीं अनिवार्य ।

 

झारखंड सरकार ने सखी मंडल की महिलाओं को स्मार्टफोन देकर तथा उन्हें उच्च सतरीय तकनीकी शिक्षा मुहैया कराकर व लुप्तप्राय पहाड़ियां आदिम जनजातियों की नवश्रृजित पहाड़िया  बटालियन में पहाड़ियां युवतियों को शामिल कर महिलाओं को एक साथ कैशलेस इकानामी से, मेक इन इंडिया की तर्ज पर ग्रामीण-पिछड़े क्षेत्रों में नवोन्मेषी उद्योगों के जाल पैदा करने तथा अति अभिवंचित वर्ग की युवतियों को सीधे रोजगार से जोड़ने की समेकित पहल शुरु कर एक नयी सोच का परिचय तो दिया ही है, महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी इसके दूरगामी प्रभाव पड़ेंगे। यदि ये योजनाएं सही ढंग से जमीन पर उतर जायें तो वहां की महिलाओं के सपनों को नई उड़ान भरने में किसी बैसाखी की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसी तरह बिहार में भी नये जमाने की सोच व मांग के अनुसार कुछ नये पहल करने होंगे, वरन् ये वोटबैंक की जमात मात्र बनकर रह जायेंगी।


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